Question
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(क) |
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति-सी छायी दुर्दिन में आँसू बनकर वह आज बरसने आयी। |
(i) |
रूपक |
(ख) |
विरह विकल बिनुही लिखी पाती दई पठाय। आँक विहीनीयौ सुचित, सूने बाँचत जाय।। |
(ii) |
श्लेष |
(ग) |
अरुन सरोरुह कर चरण दृग खंजन मुखचन्द। समै आय सुन्दरि सरद काहि न करति अनंद।। |
(iii) |
असंगति |
(घ) |
मेरे जीवन की उलझन बिखरी थी उनकी अलकें पी ली मधु मदिरा किसने थी बंद हमारी पलकें। |
(iv) |
विभावना |
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
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जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति-सी छायी दुर्दिन में आँसू बनकर वह आज बरसने आयी। |
श्लेष |
विरह विकल बिनुही लिखी पाती दई पठाय। आँक विहीनीयौ सुचित, सूने बाँचत जाय।। |
विभावना |
अरुन सरोरुह कर चरण दृग खंजन मुखचन्द। समै आय सुन्दरि सरद काहि न करति अनंद।। |
रूपक |
मेरे जीवन की उलझन बिखरी थी उनकी अलकें पी ली मधु मदिरा किसने थी बंद हमारी पलकें। |
असंगति |
Key Pointsश्लेष अलंकार-
- काव्य में जहाँ शब्द एक बार प्रयोग होता है किंतु उसके अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं, अर्थात उसके अर्थ दो या दो से अधिक निकलते हैं वहाँ श्लेष अलंकार माना जाता है।
- उदाहरण-
- जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत की सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होय॥
- जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत की सोय।
विभावना अलंकार-
- कारण के न होने पर भी किसी कार्य का हो जाना विभावना अलंकार कहलाता है।
- उदाहरण-
- बिनु पग चलै सुनें बिनु काना।
कर बिनु करम करै विधि नाना॥ - बिना पैर चलना बिना कान के सुनना, बिना हाथ के कार्य का होना ये सभी कारण के बिना ही हो रहे हैं। अतः यहाँ विभावना अलंकार है।
- बिनु पग चलै सुनें बिनु काना।
रूपक अलंकार-
- रूप तथा गुण की समानता के कारण उपमेय (सादृश्य) को उपमान (प्रसिद्ध) का रूप मान लिया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
- उदाहरण-
- चरण-कमल बंदों हरि राई।
असंगति अलंकार-
- जहाँ आपातत: विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरण्य वर्णित हो, वहाँ असंगति अलंकार होता है।
- उदाहरण-
- "हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।"
- घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं, पर पीड़ा राम को है, अत: यहाँ असंगति अलंकार है।
Last updated on Jun 6, 2025
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