काव्य गुण MCQ Quiz in தமிழ் - Objective Question with Answer for काव्य गुण - இலவச PDF ஐப் பதிவிறக்கவும்
Last updated on Mar 24, 2025
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काव्य गुण Question 1:
‘भूषण’ के काव्य में किस काव्य-गुण की प्रधानता है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 1 Detailed Solution
‘भूषण’ के काव्य में ओज काव्य-गुण की प्रधानता है।
ओज गुण –
- जहाँ कविता को पढ़कर ओज, जोश और उत्साह का भाव जाग्रत हो, 'वीर-रस' का संचार हो वहाँ 'ओज गुण' होता है।
- 'ओज गुण' की कविता में 'ट' वर्ग की प्रमुखता होती है।
- उदाहरण-
- एक क्षण भी न सोचो कि तुम होगे नष्ट,
कि तुम अनश्वर हो! तुम्हारा भाग्य है सुस्पष्ट।
- एक क्षण भी न सोचो कि तुम होगे नष्ट,
Key Pointsभूषण --
- रीतिकाल की रीतिबद्ध शाखा के कवि है।
- रचनाएँ -
- शिवराजभूषण
- शिवाबावनी
- छत्रसालदशक
- भूषण उल्लास
- भूषण हजारा
- दूषनोल्लासा।
- शिवराजभूषण में अलंकार, छत्रसाल दशक में छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम, दानशीलता व शिवाबवनी में छत्रपति शिवाजी महाराज के गुणों का वर्णन किया गया है।
Important Pointsप्रसाद गुण –
- जिस गुण विशेष के कारण सहृदय के चित्त में कोई कविता तत्काल अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करे और भाव स्पष्ट हो जाए वहाँ 'प्रसाद गुण' होता है।
- उदाहरण-
- जसुमति मन अभिलास करै
कब मेरौ लाल घुटुरुवनि रेंगे कब धरनी पग द्वैक धरै।
कब द्वै दाँत दूध के देखों कब तोतरे मुख वचन झरै।
- जसुमति मन अभिलास करै
- जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं।
- यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में रहता है।
- इस गुण सम्पृक्त रचना में 'ट' वर्ग के शब्द, पंचम वर्णों के संयोग से बने दीर्घ शब्द व लंबे पद नहीं होते।
- उदाहरण -
- बीती विभावरी जाग री।
अंबर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।"
- बीती विभावरी जाग री।
Additional Informationकाव्य गुण –
- जिस प्रकार किसी मनुष्य के बाह्य रूप, उसकी चाल-ढाल तथा व्यवहार को देखकर उसके गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है, उसी प्रकार कविता के बाह्य स्वरूप को देखकर 'काव्य गुणों' की प्रतीति होती है।
- जैसे -
- मनुष्य में विनम्रता, उदारता, दया आदि गुण देखे जाते हैं, उसी प्रकार काव्य में 'माधुर्य', 'प्रसाद' और 'ओज गुण' देखे जाते हैं।
काव्य गुण Question 2:
निम्नलिखित में से ‘माधुर्य गुण' का उदाहरण नहीं है :
Answer (Detailed Solution Below)
देखि सुदामा की दीन दसा
करुना करि कै करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं,
नैनन के जल सों पग धोये।।
काव्य गुण Question 2 Detailed Solution
‘माधुर्य गुण' का उदाहरण नहीं है-
देखि सुदामा की दीन दसा
करुना करि कै करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं,
नैनन के जल सों पग धोये।।
- यह पंक्तियाँ नरोत्तमदास जी ने सुदामा चरित को लेकर लिखी है।
Key Pointsकामायनी-
- रचनाकार-जयशंकर प्रसाद
- प्रकाशन वर्ष-1935 ई.
- विधा-काव्य
- मुख्य पात्र-
- मनु, श्रद्धा, इड़ा, कुमार, मानव आदि।
- मुख्य-
- इसमें 15 सर्ग हैं- चिंता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, इड़ा आदि।
- इसकी कथावस्तु का आधार ऋग्वेद, छान्दोग्य उपनिषद, शतपथ ब्राह्मण तथा श्रीमद्भगवद है।
- इसका मुख्य रस शांत रस है।
Important Pointsमाधुर्य गुण-
- किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में जहाँ मधुरता का संचार होता है, वहाँ माधुर्य गुण होता है।
- यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है।
Additional Informationसूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'-
- जन्म-1889-1961 ई.
- रचनाएँ-
- अनामिका(1923 ई.)
- परिमल(1930 ई.)
- गीतिका(1936 ई.)
- तुलसीदास(1938 ई.)
- कुकुरमुत्ता(1942 ई.)
- नए पत्ते(1946 ई.) आदि।
काव्य गुण Question 3:
निम्न पंक्तियों में कौन सा काव्य गुण है?
वह आता,
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता ।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुराणी झोली की फैलाता ।।
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 3 Detailed Solution
पंक्तियों में काव्य गुण है- प्रसाद गुण
प्रसाद गुण:-
- प्रसाद का शाब्दिक अर्थ - स्वच्छता ,स्पष्टता और निर्मलता।
- जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
उदाहरण-
- हे प्रभो! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए।
- शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
- लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
- ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वी व्रतधारी बनें।
Mistake Pointsपंक्ति का भाव-
- प्रस्तुत कविता में कवि ने एक भिक्षुक का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।
- कवि जब उस भिक्षुक को देखते हैं तो उसकी दयनीय दशा को देखकर उनका ह्रदय द्रवित हो उठता है।
Key Pointsकाव्य गुणों की संख्या-
- प्रसाद
- ओज
- माधुर्य
Additional Information
ओज गुण:-
उदाहरण-
माधुर्य गुण:-
उदाहरण-
|
काव्य गुण Question 4:
वीर रस में इनमें से कौन-से गुण की प्रधानता रहती है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 4 Detailed Solution
- वीर रस में इनमें से ओज गुण की प्रधानता रहती है।
Key Points
- ओज गुण वीर-रस में संयत भाव से रहता है। क्योकि, वीर उत्साही होते हैं, क्रोधी नहीं।
- वीर रस का स्थायी भाव उत्साह हैं। युद्ध या कठिन कार्य करने के लिए जगा उत्साह भाव विभावादि से पुष्ट होकर वीर रस बन जाता हैं।
युद्ध मे विपक्षी को देखकर, ओजस्वी वीर घोषणाएं या वीर गीत सुनकर तथा उत्साह वर्धक कार्यकलापों को देखने से यह रस जाग्रत होता हैं।
Additional Information
- काव्य गुण - जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं,
ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गणों के कारण मनुष्य की शोभा
बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है।
यह मुख्य रूप से तीन होते हैं-
- प्रसाद गुण :
- ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
- ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
- ओज गुण :
- ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है,
वह ओज गुण युक्त काव्य रचना मानी जाती है।
- ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है,
- माधुर्य गुण :
- हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है।
अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।
- हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है।
काव्य गुण Question 5:
प्रसाद गुण का उदाहरण नहीं है-
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 5 Detailed Solution
सही विकल्प 'मन्द-मन्द मुरली बजावत अधर धरे, मन्द-मन्द निकस्यो मुकुन्द मधुबन तें' है।
Key Points
- पंक्ति मन्द-मन्द मुरली बजावत अधर धरे, मन्द-मन्द निकस्यो मुकुन्द मधुबन तें प्रसाद गुण का उदाहरण नहीं है।
- प्रस्तुत पंक्ति में माधुर्य गुण है।
- ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है।
- वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
- अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है।
- उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
प्रसाद गुण युक्त काव्य पंक्ति | अर्थ |
विनती सुन लो हे भगवान। हम सब बालक हैं नादान। विद्या-बुद्धि नहीं कुछ पास। हमें बना लो अपना दास। |
हे भगवान हमारी विनती सुन लो हम सभी नादान बालक है। आप हमे अपना दास बना लो हमारे पास विद्या बुद्धि नहीं है। |
मैं जो नया ग्रन्थ विलोकता हूँ, भाता मुझे सो नव मित्र-सा है। | मैं जो भी नया ग्रंथ लिखता हूँ,वह मुझे मित्र लगने लगता है। |
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोये। पानी पऱात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोये।। |
सुदामा की दीन दशा देखकर श्री कृष्ण रोने लगे। सुदामा जी के परात मे हाथ धुलाये और श्री कृष्ण के आखों से बहते हुए आँसुओ से पैर धुल गए। |
माधुर्य गुण युक्त काव्य पंक्ति-
'मन्द-मन्द मुरली बजावत अधर धरे, मन्द-मन्द निकस्यो मुकुन्द मधुबन तें'
- श्री कृष्ण अपने अधरों पर मुरली रखकर धीरे धीरे मधुरता से बजते हुए
- मधुबन से निकल रहे है।
काव्य गुण Question 6:
'हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से, प्रबुद्ध-शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर-पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो।
इस काव्यांश में निहित काव्य-गुण है-
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 6 Detailed Solution
'हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से, प्रबुद्ध-शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर-पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो।
इस काव्यांश में निहित काव्य-गुण है- ओज
Key Pointsओज गुण -
- काव्य के जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त दीप्त हो जाता है, अर्थात सहृदय के चित्त में तेज का संचार हो जाता है, उसे ओज गुण कहते हैं।
- ओज गुण वीर, रौद्र और वीभत्स रसों में पाया जाता है।
- इसमें ट, ठ, ड, ढ, ध आदि कठोर वर्गों का प्रयोग होता है।
- ओज गुण की प्रकृति माधुर्य से भिन्न होती है।
- उदाहरण -
- अमर राष्ट्र उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र यह मेरी बोली।
यह ‘सुधार' समझौते वाली, मुझको भाती नहीं ठिठोली॥
- अमर राष्ट्र उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र यह मेरी बोली।
Important Pointsप्रसाद गुण -
- जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते हैं।
- स्वच्छता एवं स्पष्टता प्रसाद गुण की विशेषता मानी जाती है।
- उदाहरण -
- “चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बर तल में ।”
माधुर्य गुण -
- जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं।
- यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में रहता है।
- इस गुण सम्पृक्त रचना में 'ट' वर्ग के शब्द, पंचम वर्णों के संयोग से बने दीर्घ शब्द व लंबे पद नहीं होते।
- उदाहरण -
- 'बीती विभावरी जाग री।
अंबर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।"
- 'बीती विभावरी जाग री।
Additional Information
- प्रस्तुत पंक्ति जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'चन्द्रगुप्त' नाटक की है।
काव्य गुण Question 7:
सही विकल्प बताएं-
ह्रदय में द्रुति उत्पन्न करने वाला गुण ________ कहलाता है।
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 7 Detailed Solution
ह्रदय में द्रुति उत्पन्न करने वाला गुण माधुर्य गुण कहलाता है।
Key Pointsमाधुर्य गुण-
- हृदय को आनंद उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण संपन्न होती है।
- अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ कर चित में श्रृंगार, करुण, शांति के भाव उत्पन्न होते हैं। वह माधुर्य गुण युक्त रचना मानी जाती है।
- वैदर्भी रीति की तरह इसमें संयुक्ताक्षर ‘ट’ वर्गीय वर्णों एवं सामासिक पदों का पूर्ण अभाव पाया जाता है अथवा अल्प प्रयोग किया जाता है।
- श्रृंगार, हास्य, करुण, शांतादि रसों से युक्त रचनाओं में माधुर्य गुण पाया जाता है।
- माधुर्य गुण के उदहारण -
- तासु वचन अति सियही सुहाने दरस लागि लोचन अकुलाने
- चितवत चकित चहुदिसि सीता कहा, गए किशोर मनरिका
Additional Informationओज गुण-
- काव्य के जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त दीप्त हो जाता है, अर्थात सहृदय के चित्त में तेज का संचार हो जाता है, उसे ओज गुण कहते हैं।
इसमें ट, ठ, ड, ढ, ध आदि कठोर वर्गों का प्रयोग होता है। - उदाहरण-
- अमर राष्ट्र उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र यह मेरी बोली। यह 'सुधार' समझौते वाली, मुझको भाती नहीं ठिठोली ॥
- अमर राष्ट्र उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र यह मेरी बोली। यह 'सुधार' समझौते वाली, मुझको भाती नहीं ठिठोली ॥
प्रसाद गुण-
- ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है।
- वह प्रसाद गुणों से युक्त मानी जाती है अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते हैं।
- उदाहरण-
- जसुमति मन अभिलास करै
- कब मेरौ लाल घुटुरुवनि रेंगे कब धरनी पग द्वैक धरै।
- कब द्वै दाँत दूध के देखों कब तोतरे मुख वचन झरै।
काव्य गुण Question 8:
“मधुमय वसन्त जीवन-वन के ! बह अन्तरिक्ष की लहरों में।
कब आये थे तुम चुपके-से, रजनी के पिछले पहरों में?”
उपर्युक्त पंक्तियों में काव्य गुण है -
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 8 Detailed Solution
“मधुमय वसन्त जीवन-वन के ! बह अन्तरिक्ष की लहरों में। कब आये थे तुम चुपके-से, रजनी के पिछले पहरों में?” इन पंक्तियों में काव्य गुण है - माधुर्य गुण।
- पंक्तियों के रचनाकार-जयशंकर प्रसाद
- यह पंक्तियाँ कामायनी से ली गयी है।
माधुर्य गुण-
- जो सुनने में मधुर लगे अर्थात जहां पर कर्ण कटु वर्ण,कठोर वर्ण,संयुक्त वर्ण व द्वित्व वर्ण को छोड़कर संगीत के समान मधुर ध्वनि का प्रयोग हो।
- जिसमें लम्बे समासों,लम्बे अनुप्रास वाले पदों का प्रयोग न हो वहाँ माधुर्य गुण होता है।
- इसमें श्रृंगार रस, करूण रस, शांत रस, हास्य रस होता है।
Key Pointsकामायनी-
- रचनाकार-जयशंकर प्रसाद
- प्रकाशन वर्ष-1936 ई.
- मुख्य पात्र-
- मनु, श्रद्धा, इड़ा और कुमार।
- कामायनी में कुल 15 सर्ग हैं-
- चिंता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, इड़ा, स्वप्न, संघर्ष, निर्वेद, दर्शन, रहस्य और आनंद।
- मुख्य रस - निर्वेद(शांत रस)
- मुख्य छंद - ताटंक
Important Pointsजयशंकर प्रसाद-
- जन्म-1889-1937 ई.
- छायावाद के प्रमुख कवि रहे है।
- मुख्य रचनाएँ-
- उर्वशी(1909 ई.), वन मिलन(1909 ई.), कानन कुसुम(1913 ई.), प्रेम पथिक(1913 ई.), झरना(1918 ई.), आँसू(1925 ई.), लहर(1933 ई.) आदि।
Additional Informationप्रसाद गुण-
- पाठक द्वारा जब किसी कविता/काव्यांश/काव्य को पढ़ा जाता है और पढ़ने के साथ ही उसके अर्थ की स्पष्टता हो जाती है।
- अर्थात पाठक बड़े आसानी के साथ है उस काव्य के अर्थ को ग्रहण कर लेता है,तो उसे 'प्रसाद गुण' कहते हैं।
- उदाहरण-
अब न कुछ भी पास मेरे
माँगते हो रूप क्या
हार बैठा जिंदगी का
दाँव पहले दाँव में।
मत कुरेदो दर्द होता है, हृदय के घाव में।
ओज गुण-
- जिस काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में ओज,उमंग और उत्साह का संचार होता है, उसे ओज गुण प्रधान काव्य कहा जाता हैं ।
- यह गुण मुख्य रूप से वीर,वीभत्स,रौद्र और भयानक रस में पाया जाता है।
- उदाहरण-
बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
काव्य गुण Question 9:
इस उद्धरण में कौनसा काव्य - गुण है ?
बिंदु में थीं तुम सिंधु अनंत, एक सुर में समस्त संगीत।
एक कलिका में अखिल वसंत, धरा पर थीं तुम स्वर्ग पुनीत।
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 9 Detailed Solution
बिंदु में थीं तुम सिंधु अनंत, एक सुर में समस्त संगीत। एक कलिका में अखिल वसंत, धरा पर थीं तुम स्वर्ग पुनीत। इस उद्धरण में माधुर्य काव्य - गुण है।
Key Pointsमाधुर्य गुण-
- हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है।
- अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।
- उदाहरण-
- बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हसै, देन कहि नटि जाय।।
- बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
Important Pointsओज गुण-
- ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है, वह ओज गुणयुक्त काव्य रचना मानी जाती है।
- वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स आदि रसों की रचना में ‘ओज’ गुण ही अधिक पाया जाता है।
- उदाहरण-
- देशभक्त वीरों मरने से नेक नहीं डरना होगा।
प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा।।
- देशभक्त वीरों मरने से नेक नहीं डरना होगा।
प्रसाद गुण-
- प्रसाद का शाब्दिक अर्थ- स्वच्छता ,स्पष्टता और निर्मलता।
- ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
- अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
- मुख्यतः शांत रस और भक्ति रस की प्रधानता होती है।
- उदाहरण-
- नर हो न निराश करो मन को।
काम करो, कुछ काम करो।
जग में रहकर कुछ नाम करो।।
- नर हो न निराश करो मन को।
आभिजात्य-
- अर्थ-
- अच्छे कुल में उत्पन्न, समझदार आदि।
काव्य गुण Question 10:
काव्य-गुण के विषय में गलत कथन है
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य गुण Question 10 Detailed Solution
काव्य-गुण के विषय में गलत कथन है-आचार्य भरत ने गुणों की संख्या आठ मानी है।
- आचार्य भरत ने गुणों की संख्या दस मानी हैं-
- माधुर्य
- ओज
- प्रसाद
- श्लेष
- समता
- सुकुमारता
- अर्थव्याप्ति
- उदारता
- क्रांति
- समाधि
Key Pointsविभिन्न आचार्यों द्वारा मानी गयी गुणों की संख्या हैं-
आचार्य | गुण संख्या |
दंडी | 10 |
भामह | 03 |
वामन | 20 |
आनंदवर्धन | 03 |
मम्मट | 03 |
भोजराज | 24 |
विश्वनाथ | 03 |
जगन्नाथ | 03 |
Important Pointsकाव्य गुण-
- यह माना गया है की काव्य का मूल रस है और रस का धर्म गुण है।
- गुण के बगैर रस संभव नहीं है।
- सामान्यतः तीन गुण स्वीकार किए गए हैं-
- माधुर्य
- ओज
- प्रसाद
आचार्य मम्मट के अनुसार-
- जिस प्रकार शूरता,वीरता आदि हमारी आत्मा के धर्म है हमारे शरीर के नही;उसी प्रकार शब्द-अर्थ काव्य के शरीर रूप माने गए है और रस को सभी काव्यज्ञों के द्वारा आत्मा कहा गया है।
- रस काव्य में अंगी माना गया है जबकि गुण अलंकार आदि इसके अंग है।
- अत: काव्य गुण काव्य की आत्मारूप रस को बढाने वाले हेतु (कारण) है।
- ये रसो के साथ निश्चित रूप से उपस्थित होते है।
- अर्थात् सभी रसो में कोई-न-कोई गुण निश्चित रूप से होता ही है
Additional Informationगुण इस प्रकार हैं-
गुण | माधुर्य गुण | ओज गुण | प्रसाद गुण |
अर्थ | काव्य से हृदय मे मधुरता का संचार। | काव्य से हृदय मे उत्साह,उमंग,स्फूर्ति का संचार। | काव्य से हृदय मे शांति व प्रसन्नता का संचार। |
संबद्ध रस | शृंगार,करुण और शांत। | वीर,रौद्र,भयानक और वीभत्स। | समस्त रस। |
उदाहरण | बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल। | हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती। | नर हो न निराश क्रो मन को। |