काव्य गुण MCQ Quiz - Objective Question with Answer for काव्य गुण - Download Free PDF

Last updated on Jun 30, 2025

Latest काव्य गुण MCQ Objective Questions

काव्य गुण Question 1:

आनन्दवर्धन ने काव्य-गुणों की संख्या कितनी मानी है ?

  1. 10
  2. 5
  3. 4
  4. 3

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : 10

काव्य गुण Question 1 Detailed Solution

आनन्दवर्धन ने काव्य-गुणों की संख्या मानी है - 3

Key Pointsविभिन्न आचार्यों द्वारा मानी गयी गुणों की संख्या हैं-

आचार्य  गुण संख्या 
दंडी  10 
भामह  03 
वामन  20 
आनंदवर्धन  03 
मम्मट  03 
भोजराज  24 
विश्वनाथ 03 
जगन्नाथ  03

Important Pointsकाव्य गुण-

  • यह माना गया है की काव्य का मूल रस है और रस का धर्म गुण है। 
  • गुण के बगैर रस संभव नहीं है। 
  • सामान्यतः तीन गुण स्वीकार किए गए हैं-
    • माधुर्य 
    • ओज 
    • प्रसाद 

Additional Informationगुण इस प्रकार हैं-

गुण  माधुर्य गुण  ओज गुण  प्रसाद गुण 
अर्थ  काव्य से हृदय मे मधुरता का संचार। काव्य से हृदय मे उत्साह,उमंग,स्फूर्ति का संचार।  काव्य से हृदय मे शांति व प्रसन्नता का संचार। 
संबद्ध रस  शृंगार,करुण और शांत।  वीर,रौद्र,भयानक और वीभत्स।  समस्त रस। 
उदाहरण  बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल।  हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।  नर हो न निराश क्रो मन को।

काव्य गुण Question 2:

वीर रस में इनमें से कौन-से गुण की प्रधानता रहती है?

  1. ओज
  2. प्रसाद
  3. माधुर्य
  4. उपर्युक्त में से एक से अधिक
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : ओज

काव्य गुण Question 2 Detailed Solution

सही उत्तर है - ‘ओज’।
  • वीर रस में इनमें से ओज गुण की प्रधानता रहती है।

Key Points

  • ओज गुण वीर-रस में संयत भाव से रहता है। क्योकि, वीर उत्साही होते हैं, क्रोधी नहीं।
  • वीर रस का स्थायी भाव उत्साह हैं। युद्ध या कठिन कार्य करने के लिए जगा उत्साह भाव विभावादि से पुष्ट होकर वीर रस बन जाता हैं।
    युद्ध मे विपक्षी को देखकर, ओजस्वी वीर घोषणाएं या वीर गीत सुनकर तथा उत्साह वर्धक कार्यकलापों को देखने से यह रस जाग्रत होता हैं।

Additional Information

  • काव्य गुण - जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं,
    ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गणों के कारण मनुष्य की शोभा
    बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है।

यह मुख्य रूप से तीन होते हैं-

  • प्रसाद गुण :
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
      अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
  • ओज गुण :
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है,
      वह ओज गुण युक्त काव्य रचना मानी जाती है।
  • माधुर्य गुण :
    • हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है।
      अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।

काव्य गुण Question 3:

इनमें माधुर्य गुण से संबंधित कौन सा कथन असंगत है ?

  1. माधुर्य गुण में सामान्यतः ट, ठ, ड, ढ वर्णों का अभाव रहता है।
  2. इसमें समास पदावली होती है।
  3. हास्य और अद्भुत रस में इसका प्रयोग होता है। 
  4. उपर्युक्त में एक से अधिक  
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : उपर्युक्त में एक से अधिक  

काव्य गुण Question 3 Detailed Solution

सही उत्तर है- उपर्युक्त में एक से अधिक 

माधुर्य गुण से संबंधित असंगत कथन है-हास्य और अद्भुत रस में इसका प्रयोग होता है। और इसमें समास पदावली होती है।

  • इसमें प्रयुक्त होने वाले रस हैं-
    • श्रृंगार,करुण और शांत रस 
  • इसमें समास रहित पदावली होती है। 

Key Pointsमाधुर्य गुण-

  • काव्य से ह्रदय में मधुरता का संचार होना 'माधुर्य गुण' कहलाता है
  • उदाहरण-
    • बसौ मोरे  नैनन मा नंदलाल।-मीरा 

Important Pointsमाधुर्य गुण के भाषागत उल्लेखनीय बिंदु-

  • ट-वर्ग व्यंजन,सयुक्त अक्षर और दीर्घ समासयुक्त पदों का प्रयोग नहीं होता है
  • 'र'  के मेल से निर्मित पद पर प्रयोग नही किये जाते है।
  • अनुनासिक और अनुस्वार वाले वर्णों क अधिकता होती है

काव्य गुण Question 4:

“काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः।” काव्य गुण की यह परिभाषा किस आचार्य ने प्रस्तुत की है?

  1. भामह
  2. दंडी
  3. मम्मट
  4. उपर्युक्त में एक से अधिक  
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 5 : उपर्युक्त में से कोई नहीं

काव्य गुण Question 4 Detailed Solution

सही उत्तर है- उपर्युक्त में से कोई नहीं   

“काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः।” काव्य गुण की यह परिभाषा 'वामन' आचार्य ने प्रस्तुत की है।

Key Points

  • वामन रीति संप्रदाय के प्रवर्तक है।
  • वामन ने रीति को काव्य की अत्मा माना है।
  • वामन के अनुसार पदों की विशिष्ट रचना को रीति कहते है।
  • वामन ने रीति के तीन भेद माने है।
  • 1) वैदर्भी 2) गौडी 3) पांचाली

Additional Information 

आचार्य  काव्य गुण की परिभाषा
भामह  शब्दार्थो सहितो काव्यम गद्य पद्य च तद्विधा।
दंडी

शरीर तावदिष्टार्य व्यवच्छिना पदावली

मम्मट तद्दोषौ शब्दार्थों सगुणवनलंकृति पुनः क्वापि।

काव्य गुण Question 5:

‘भूषण’ के काव्य में किस काव्य-गुण की प्रधानता है ? 

  1. माधुर्य 
  2. ओज 
  3. प्रसाद 
  4. माधुर्य और ओज दोनों  

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : ओज 

काव्य गुण Question 5 Detailed Solution

‘भूषण’ के काव्य में ओज  काव्य-गुण की प्रधानता है।

ओज गुण – 

  • जहाँ कविता को पढ़कर ओज, जोश और उत्साह का भाव जाग्रत हो, 'वीर-रस' का संचार हो वहाँ 'ओज गुण' होता है।
  • 'ओज गुण' की कविता में 'ट' वर्ग की प्रमुखता होती है।
  • उदाहरण- 
    • एक क्षण भी न सोचो कि तुम होगे नष्ट,
      कि तुम अनश्वर हो! तुम्हारा भाग्य है सुस्पष्ट।

Key Pointsभूषण --

  • रीतिकाल की रीतिबद्ध शाखा के कवि है। 
  • रचनाएँ - 
    • शिवराजभूषण
    • शिवाबावनी
    • छत्रसालदशक
    • भूषण उल्लास
    • भूषण हजारा
    • दूषनोल्लासा।
  • शिवराजभूषण में अलंकार, छत्रसाल दशक में छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम, दानशीलता व शिवाबवनी में छत्रपति शिवाजी महाराज के गुणों का वर्णन किया गया है।

Important Pointsप्रसाद गुण –

  • जिस गुण विशेष के कारण सहृदय के चित्त में कोई कविता तत्काल अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करे और भाव स्पष्ट हो जाए वहाँ 'प्रसाद गुण' होता है।
  • उदाहरण-
    • जसुमति मन अभिलास करै
      कब मेरौ लाल घुटुरुवनि रेंगे कब धरनी पग द्वैक धरै।
      कब द्वै दाँत दूध के देखों कब तोतरे मुख वचन झरै।
माधुर्य गुण --
  • जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं।
  • यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में रहता है।
  • इस गुण सम्पृक्त रचना में 'ट' वर्ग के शब्द, पंचम वर्णों के संयोग से बने दीर्घ शब्द व लंबे पद नहीं होते।
  • उदाहरण -
    • बीती विभावरी जाग री।
      अंबर-पनघट में डुबो रही
      तारा-घट ऊषा नागरी।"

Additional Informationकाव्य गुण –

  • जिस प्रकार किसी मनुष्य के बाह्य रूप, उसकी चाल-ढाल तथा व्यवहार को देखकर उसके गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है, उसी प्रकार कविता के बाह्य स्वरूप को देखकर 'काव्य गुणों' की प्रतीति होती है।
  • जैसे -
    • मनुष्य में विनम्रता, उदारता, दया आदि गुण देखे जाते हैं, उसी प्रकार काव्य में 'माधुर्य', 'प्रसाद' और 'ओज गुण' देखे जाते हैं।

Top काव्य गुण MCQ Objective Questions

"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती स्वयं प्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती"

प्रस्तुत पंक्तियों में काव्य का कौन-सा गुण मौजूद है ?

  1. माधुर्य
  2. ओज
  3. प्रसाद
  4. इनमें से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : ओज

काव्य गुण Question 6 Detailed Solution

Download Solution PDF

उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "ओज गुण" सही है अन्य विकल्प असंगत है।

Key Points
  • उपर्युक्त पंक्तियों में ओज गुण हैं।
  • उपर्युक्त पंक्तियां जयशंकर प्रसाद की हैं।
  • ओज गुण का शाब्दिक अर्थ है-तेज, प्रताप या दीप्ति । 
  • यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स, रौद्र और भयानक रस में पाया जाता है।
Additional Information
  • प्रसाद गुण
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है। 
    • अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
  • माधुर्य गुण 
    • हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है। 
    • अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।

निम्नलिखित में 'माधुर्य गुण' का उदाहरण हैः

  1. सिखा दो ना मधुपकुमारि! मुझे भी अपना मीठा गान।

    कुसुम के चुने कटोरों से करा दो ना कुछ-कुछ मधुपान।।

  2. वह आता।

    दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।

  3. कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि।

    कहत लखन सन राम हृदय गुनि।

    मानहु मदन दुंदुभी दीनी।

    मनसा बिस्व-विजय कहँ कीनी।।

  4. विकसते मुरझाने को फूल, उदित होता छिपने को चंद।

    शून्य होने को भरते मेघ, दीप जलता होने को मंद।

    यहाँ किसका अनंत यौवन, अरे अस्थिर यौवन।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 :

कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि।

कहत लखन सन राम हृदय गुनि।

मानहु मदन दुंदुभी दीनी।

मनसा बिस्व-विजय कहँ कीनी।।

काव्य गुण Question 7 Detailed Solution

Download Solution PDF

'माधुर्य गुण' का उदाहरण हैः 

कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि।

कहत लखन सन राम हृदय गुनि।

मानहु मदन दुंदुभी दीनी।

मनसा बिस्व-विजय कहँ कीनी।।

माधुर्य गुण-

  • काव्य से हृदय में मधुरता का संचार होना 'माधुर्य गुण' कहलाता है। 
  • उदाहरण-
    • बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल- मीरा 
  • इसका संबंध शृंगार, करुण और शांत रस से होता है।

Key Pointsसिखा दो ना मधुपकुमारि! मुझे भी अपना मीठा गान। कुसुम के चुने कटोरों से करा दो ना कुछ-कुछ मधुपान।।-

  • रचनाकार-सुमित्रानंदन पंत 
  • विधा-काव्य 
  • यह मधुकरी कविता की पंक्तियाँ है।वह आता। दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।-
  • रचनाकार-सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
  • विधा-काव्य 
  • यह भिक्षुक कविता की पंक्तियाँ है। 

कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन राम हृदय गुनि। मानहु मदन दुंदुभी दीनी। मनसा बिस्व-विजय कहँ कीनी।।-

  • रचनाकार-गोस्वामी तुलसीदास 
  • विधा-काव्य  
  • यह रामचरितमानस के बालकाण्ड से से लिया गया दोहा है। 

विकसते मुरझाने को फूल, उदित होता छिपने को चंद। शून्य होने को भरते मेघ, दीप जलता होने को मंद। यहाँ किसका अनंत यौवन, अरे अस्थिर यौवन।-

  • रचनाकार-महादेवी वर्मा 
  • विधा-काव्य 
  • यह नीहार काव्य संग्रह से ली गई पंक्तियाँ हैं। 

Additional Informationकाव्य गुण-

  • शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है।
  • वामन के अनुसार ’गुण’ काव्य के नित्य धर्म है।

“काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः।” काव्य गुण की यह परिभाषा किस आचार्य ने प्रस्तुत की है?

  1. भामह
  2. दंडी
  3. मम्मट
  4. वामन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : वामन

काव्य गुण Question 8 Detailed Solution

Download Solution PDF

“काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः।” काव्य गुण की यह परिभाषा 'वामन' आचार्य ने प्रस्तुत की है।

Key Points

  • वामन रीति संप्रदाय के प्रवर्तक है।
  • वामन ने रीति को काव्य की अत्मा माना है।
  • वामन के अनुसार पदों की विशिष्ट रचना को रीति कहते है।
  • वामन ने रीति के तीन भेद माने है।
  • 1) वैदर्भी 2) गौडी 3) पांचाली

Additional Information 

आचार्य  काव्य गुण की परिभाषा
भामह  शब्दार्थो सहितो काव्यम गद्य पद्य च तद्विधा।
दंडी

शरीर तावदिष्टार्य व्यवच्छिना पदावली

मम्मट तद्दोषौ शब्दार्थों सगुणवनलंकृति पुनः क्वापि।

"काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः" काव्य-गुण की यह परिभाषा किस आचार्य ने दी है?

  1. भामह 
  2. आनंदवर्धन 
  3. अभिनवगुप्त 
  4. वामन 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : वामन 

काव्य गुण Question 9 Detailed Solution

Download Solution PDF

"काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः" काव्य-गुण की यह परिभाषा आचार्य वामन ने दी है।

  • अर्थ-
    • शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है 

Key Pointsआचार्य वामन-

  • समय-8 वीं शती
  • ग्रन्थ-
    • काव्यलंकार सूत्र।
  • रीति को काव्य की आत्मा माना है। 
  • रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक मने जाते है

Important Pointsआचार्य भामह-

  • समय-छठी शती 
  • आचार्य भामह को 'अलंकार सम्प्रदाय' का प्रवर्तक माना जाता है।
  • मुख्य ग्रन्थ-
    • दशकुमार चरित,अवन्तिसुंदरी कथा आदि
  • अलंकार संबंधी भामह का प्रमुख ग्रन्थ है-
    • काव्यालंकार
    • यह ग्रन्थ परिच्छेदों में व्यक्त हैं।

आनंदवर्धन-

  • समय- 9वीं शती 
  • मुख्य ग्रन्थ-
    • ध्वन्यालोक,अभिनव भारती,तन्त्रालोक आदि। 
  • ध्वनि को काव्य की आत्मा माना है। 
  • यह ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक है।

अभिनवगुप्त-

  • समय-10 वीं शती 
  • मुख्य ग्रन्थ-
    • अभिनवभारती,तन्त्रालोक,ध्वन्यालोक आदि।

निम्नलिखित पंक्तियों में कौन सा गुण विद्यमान है:

हिमाद्रि तुंग श्रंग से प्रबुध्द शुध्द भारती।

स्वयं प्रभा, समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।

  1. माधुर्य गुण
  2. प्रसाद गुण
  3. तमो गुण
  4. ओज गुण

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : ओज गुण

काव्य गुण Question 10 Detailed Solution

Download Solution PDF

उपरोक्त पंक्तियों में ओज गुण है। अन्य विकल्प असंगत हैं। अत: सही उत्तर विकल्प 4 'ओज गुण' है।

Key Points

  • उपरोक्त पंक्ति ओज गुण का उदाहरण है।
  • इसमें  गौडी रीति की तरह इसमें संयुक्ताक्षरों, ट वर्गीय वर्णों, सामासिक पदों एवं रेफयुक्त वर्णों का प्रयोग अधिक किया गया है।
  • यह वीर रस से युक्त है, अत: ‘ओज’ गुण है।

Additional Information 

काव्य गुण - जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं, ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गणों के कारण मनुष्य की शोभा बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है। यह मुख्य रूप से तीन होते हैं -

गुण का नाम

परिभाषा

प्रसाद गुण

ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है। अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।

ओज गुण

ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है, वह ओजगुणयुक्त काव्य रचना मानी जाती है।

माधुर्य गुण

हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है। अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।

 

निम्नलिखित में से ‘माधुर्य गुण' का उदाहरण नहीं है :

  1. लाली बन सरल कपोलों की,

    आँखों में अंजन सी लगती।

    कुंचित अलकों सी घुंघराली,

    मन की मरोर बन कर जगती।

  2. कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि।

    कहत लखन सन राम हृदय गुनि।

  3. देखि सुदामा की दीन दसा

    करुना करि कै करुनानिधि रोये।

    पानी परात को हाथ छुयो नहिं,

    नैनन के जल सों पग धोये।

  4. नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।

    करहु सो मो उर धाम, सदा क्षीर-सागर सयन।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 :

देखि सुदामा की दीन दसा

करुना करि कै करुनानिधि रोये।

पानी परात को हाथ छुयो नहिं,

नैनन के जल सों पग धोये।

काव्य गुण Question 11 Detailed Solution

Download Solution PDF

‘माधुर्य गुण' का उदाहरण नहीं है- 

देखि सुदामा की दीन दसा

करुना करि कै करुनानिधि रोये।

पानी परात को हाथ छुयो नहिं,

नैनन के जल सों पग धोये।।

  • यह पंक्तियाँ नरोत्तमदास जी ने सुदामा चरित को लेकर लिखी है। 

Key Pointsकामायनी-

  • रचनाकार-जयशंकर प्रसाद 
  • प्रकाशन वर्ष-1935 ई. 
  • विधा-काव्य 
  • मुख्य पात्र-
    • मनु, श्रद्धा, इड़ा, कुमार, मानव आदि। 
  • मुख्य-
    • इसमें 15 सर्ग हैं- चिंता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, इड़ा आदि। 
    • इसकी कथावस्तु का आधार ऋग्वेद, छान्दोग्य उपनिषद, शतपथ ब्राह्मण तथा श्रीमद्भगवद है। 
    • इसका मुख्य रस शांत रस है।  

Important Pointsमाधुर्य गुण-

  • किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में जहाँ मधुरता का संचार होता है, वहाँ माधुर्य गुण होता है।
  • यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है।

Additional Informationसूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'-

  • जन्म-1889-1961 ई. 
  • रचनाएँ-
    • अनामिका(1923 ई.)
    • परिमल(1930 ई.)
    • गीतिका(1936 ई.)
    • तुलसीदास(1938 ई.)
    • कुकुरमुत्ता(1942 ई.)
    • नए पत्ते(1946 ई.) आदि। 

आनन्दवर्धन ने काव्य-गुणों की संख्या कितनी मानी है ?

  1. 10
  2. 5
  3. 4
  4. 3

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : 10

काव्य गुण Question 12 Detailed Solution

Download Solution PDF

आनन्दवर्धन ने काव्य-गुणों की संख्या मानी है - 3

Key Pointsविभिन्न आचार्यों द्वारा मानी गयी गुणों की संख्या हैं-

आचार्य  गुण संख्या 
दंडी  10 
भामह  03 
वामन  20 
आनंदवर्धन  03 
मम्मट  03 
भोजराज  24 
विश्वनाथ 03 
जगन्नाथ  03

Important Pointsकाव्य गुण-

  • यह माना गया है की काव्य का मूल रस है और रस का धर्म गुण है। 
  • गुण के बगैर रस संभव नहीं है। 
  • सामान्यतः तीन गुण स्वीकार किए गए हैं-
    • माधुर्य 
    • ओज 
    • प्रसाद 

Additional Informationगुण इस प्रकार हैं-

गुण  माधुर्य गुण  ओज गुण  प्रसाद गुण 
अर्थ  काव्य से हृदय मे मधुरता का संचार। काव्य से हृदय मे उत्साह,उमंग,स्फूर्ति का संचार।  काव्य से हृदय मे शांति व प्रसन्नता का संचार। 
संबद्ध रस  शृंगार,करुण और शांत।  वीर,रौद्र,भयानक और वीभत्स।  समस्त रस। 
उदाहरण  बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल।  हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।  नर हो न निराश क्रो मन को।

काव्य गुण Question 13:

वीर रस में इनमें से कौन-से गुण की प्रधानता रहती है?

  1. ओज
  2. प्रसाद
  3. माधुर्य
  4. ये सभी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : ओज

काव्य गुण Question 13 Detailed Solution

सही उत्तर है - ‘ओज’।
  • वीर रस में इनमें से ओज गुण की प्रधानता रहती है।

Key Points

  • ओज गुण वीर-रस में संयत भाव से रहता है। क्योकि, वीर उत्साही होते हैं, क्रोधी नहीं।
  • वीर रस का स्थायी भाव उत्साह हैं। युद्ध या कठिन कार्य करने के लिए जगा उत्साह भाव विभावादि से पुष्ट होकर वीर रस बन जाता हैं।
    युद्ध मे विपक्षी को देखकर, ओजस्वी वीर घोषणाएं या वीर गीत सुनकर तथा उत्साह वर्धक कार्यकलापों को देखने से यह रस जाग्रत होता हैं।

Additional Information

  • काव्य गुण - जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में शूरवीरता, सच्चरित्रता, उदारता, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुण होते हैं,
    ठीक उसी प्रकार काव्य में भी प्रसाद, ओज, माधुर्य आदि गुण होते हैं। अतएव जैसे चारित्रिक गणों के कारण मनुष्य की शोभा
    बढ़ती है वैसे ही काव्य में भी इन गुणों का संचार होने से उसके आत्मतत्त्व या रस में दिव्य चमक सी आ जाती है।

यह मुख्य रूप से तीन होते हैं-

  • प्रसाद गुण :
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है, वह प्रसाद गुण से युक्त मानी जाती है।
      अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है, उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते है।
  • ओज गुण :
    • ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ने से चित्त में जोश, वीरता, उल्लास आदि की भावना उत्पन्न हो जाती है,
      वह ओज गुण युक्त काव्य रचना मानी जाती है।
  • माधुर्य गुण :
    • हृदय को आनन्द उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण सम्पन्न होती है।
      अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़कर चित्त में श्रृंगार, करुणा या शांति के भाव उत्पन्न होते हैं, वह माधुर्य गुणयुक्त रचना मानी जाती है।

काव्य गुण Question 14:

काव्य-गुण के विषय में गलत कथन है  

  1. आचार्य मम्मट के अनुसार गुण रस के उत्कर्ष के कारण रूप धर्म हैं।
  2. आचार्य भरत ने गुणों की संख्या आठ मानी है।
  3. जिसमें स्वच्छता, सरलता और सहजग्राह्यता हो, प्रसाद गुण कहलाता है।
  4. माधुर्य गुण का संबंध शृंगार, करुण और शांत रसों से होता है।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : आचार्य भरत ने गुणों की संख्या आठ मानी है।

काव्य गुण Question 14 Detailed Solution

काव्य-गुण के विषय में गलत कथन है-आचार्य भरत ने गुणों की संख्या आठ मानी है।

  • आचार्य भरत ने गुणों की संख्या दस मानी हैं-
    • ​माधुर्य 
    • ओज 
    • प्रसाद 
    • श्लेष 
    • समता 
    • सुकुमारता 
    • अर्थव्याप्ति 
    • उदारता 
    • क्रांति 
    • समाधि 

Key Pointsविभिन्न आचार्यों द्वारा मानी गयी गुणों की संख्या हैं-

आचार्य  गुण संख्या 
दंडी  10 
भामह  03 
वामन  20 
आनंदवर्धन  03 
मम्मट  03 
भोजराज  24 
विश्वनाथ 03 
जगन्नाथ  03

Important Pointsकाव्य गुण-

  • यह माना गया है की काव्य का मूल रस है और रस का धर्म गुण है। 
  • गुण के बगैर रस संभव नहीं है। 
  • सामान्यतः तीन गुण स्वीकार किए गए हैं-
    • माधुर्य 
    • ओज 
    • प्रसाद 

आचार्य मम्मट के अनुसार-

  • जिस प्रकार शूरता,वीरता आदि हमारी आत्मा के धर्म है हमारे शरीर के नही;उसी प्रकार शब्द-अर्थ काव्य के शरीर रूप माने गए है और रस को सभी काव्यज्ञों के द्वारा आत्मा कहा गया है।
  • रस काव्य में अंगी माना गया है जबकि गुण अलंकार आदि इसके अंग है।
  • अत: काव्य गुण काव्य की आत्मारूप रस को बढाने वाले हेतु (कारण) है।
  • ये रसो के साथ निश्चित रूप से उपस्थित होते है।
  • अर्थात् सभी रसो में कोई-न-कोई गुण निश्चित रूप से होता ही है

Additional Informationगुण इस प्रकार हैं-

गुण  माधुर्य गुण  ओज गुण  प्रसाद गुण 
अर्थ  काव्य से हृदय मे मधुरता का संचार। काव्य से हृदय मे उत्साह,उमंग,स्फूर्ति का संचार।  काव्य से हृदय मे शांति व प्रसन्नता का संचार। 
संबद्ध रस  शृंगार,करुण और शांत।  वीर,रौद्र,भयानक और वीभत्स।  समस्त रस। 
उदाहरण  बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल।  हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।  नर हो न निराश क्रो मन को। 

काव्य गुण Question 15:

निम्नलिखित में से कौन-सा काव्य गुण नहीं है?

  1. श्लेष
  2. माधुर्य
  3. शक्ति
  4. समाधि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : शक्ति

काव्य गुण Question 15 Detailed Solution

 काव्य गुण नहीं है-शक्ति

  • शक्ति अर्थ-ताकत,पराक्रम आदि।
  • पर्यायवाची शब्द-अधिकार,अधिपत्य,स्वत्व,प्रभुत्व आदि।

Key Points

  • काव्य गुण-काव्य के सौंदर्य में वृद्धि करने वाले और उसमें अनिवार्य रूप से विद्यमान रहने वाले धर्म को गुण कहते हैं।

विभिन्न आचार्यो ने गुण के अलग-अलग भेद बताये हैं-

  • भरतमुनि और दंडी-10 काव्य गुण
  • वामन-20 काव्य गुण
  • भामह,मम्मट,विश्वनाथ और जगन्नाथ-3 काव्य गुण

Important Points

भरतमुनि द्वारा स्वीकृत 10 गुण हैं-

  • श्लेष,ओज,प्रसाद,समता,समाधि,माधुर्य,सुकुमारता,सौकुमार्य और उदारता,अर्थव्यक्ति और कांति।

मुख्य रूप से 3 गुण स्वीकृत हैं-

  • प्रसाद,ओज और माधुर्य।

माधुर्य गुण-

  • अर्थ-काव्य से हृदय में मधुरता का संचार होना माधुर्य गुण कहलाता है।
  • उदाहरण-"बसौ मोरे नैनन मा नंदलाल।"- मीरा

ओज गुण-

  • अर्थ-काव्य से हृदय में उत्साह,उमंग,आवेश और स्फूर्ति आदि का संचार होना ओज गुण कहलाता है।
  • उदाहरण-"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।"- जयशंकर प्रसाद

प्रसाद गुण-

  • अर्थ-काव्य से हृदय में शांति का संचार होना और चित्तगत प्रसन्नता की अनुभूति प्रसाद गुण कहलाता है।
  • उदाहरण-"जाकी रही भावना जैसी।प्रभु मूरति देखी तिन तैसी।"-तुलसीदास
Get Free Access Now
Hot Links: rummy teen patti teen patti mastar teen patti master download teen patti royal teen patti real money app