समास MCQ Quiz - Objective Question with Answer for समास - Download Free PDF
Last updated on May 7, 2025
Latest समास MCQ Objective Questions
समास Question 1:
'राजपुरुषः' इत्यत्र समासः कः?
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 1 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'राजपुरुषः' इसमें समास है-
स्पष्टीकरण - राजपुरुषः यह शब्द व्यधिकरण तत्पुरुष समास का उदाहरण है। (व्यधिकरण तत्पुरुष समास के सात भेद हैं, जो द्वितीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति तक और नञ् तत्पुरुष समास होता है।)
- पद - राजपुरुषः
- समास विग्रह - राज्ञः पुरुषः
- समास - व्यधिकरण तत्पुरुष समास (षष्ठी विभक्ति)
सूत्र - ‘उत्तरपदप्रधान तत्पुरुषः' इस सूत्र के अनुसार जिस समास में उत्तरपद प्रधान होता है, वह तत्पुरुष समास है। तत्पुरुष समास में दोनों पदों का संबंध विभक्ति से दिखाया जाता है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
राजपुरुषः इस सामासिक पद में षष्ठी इस सूत्र से राज्ञः पुरुषः यह षष्ठी तत्पुरुष समास होता है।
उदाहरण
- सूर्यस्य उदयः - सूर्योदयः।
- देवानां भाषा - देवभाषा।
- राज्ञः पुत्रः - राजपुत्रः।
अतः यह स्पष्ट होता है कि राजपुरुषः षष्ठी तत्पुरुष समास का उदाहरण है।
समास Question 2:
'यात्रावसरे' इत्यस्य विग्रहवाक्यं किम्?
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 2 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - यात्रावसरे इसका विग्रहवाक्य क्या होगा।
स्पष्टीकरण -
यात्रावसरे शब्द का विग्रह है -
"यात्रायाः अवसरे"
Important Points'यात्रावसरे' शब्द में षष्ठी तत्पुरुष समास है।
षष्ठी तत्पुरुष समास -
- जिसमें प्रथम शब्द षष्ठी विभक्ति में हो।
- यह समास प्रायः सभी षष्ठन्त्य शब्द के साथ होता है।
उदाहरण-
- राजपुरुषः - राज्ञः पुरुषः।
- ईश्वरभक्तः - ईश्वरस्य भक्तः।
- सुखभोग - सुखस्य भोग
Additional Informationतत्पुरुष समास -
'उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः' अर्थात जिस समास में उत्तरपद (पर) का अर्थ प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे- राजपुत्रः (राज्ञः पुत्रः - राजा का पुत्र)। इस पद में पूर्वपद 'राजा' प्रधान न होकर उत्तर (बादवाला) पद 'पुत्र' प्रधान है, इसलिए यह तत्पुरुष समास हुआ।
तत्पुरुष समास के अन्य भी छः भेद है- द्वितीया तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष , चतुर्थी तत्पुरुष, पंचमी तत्पुरुष षष्ठी तत्पुरुष और सप्तमी तत्पुरुष।
द्वितीया तत्पुरुष- जिस तत्पुरुष समास का पूर्वपद द्वितीयान्त हो उसे द्वितीय तत्पुरुष कहते है।
जैसे - शरणप्राप्त (शरणम् प्राप्तः -शरण को प्राप्त करनेवाला)
तृतीया तत्पुरुष- जिस तत्पुरुष समास का पूर्वपद तृतीयान्त हो उसे तृतीया तत्पुरुष कहते है।
जैसे - ज्ञानहीन (ज्ञानेन हीन-ज्ञान से हीन)
चतुर्थी तत्पुरुष - जिस तत्पुरुष समास के पूर्वपद में चतुर्थी विभक्ति हो उसे चतुर्थी तत्पुरुष कहते हैं।
जैसे- देशहितम् (देशाय हितम् -देश के लिए भलाई)
पंचमी तत्पुरुष- यदि तत्पुरुष समास के पूर्वपद में पञ्चमी विभक्ति हो तो उसे पञ्चमी तत्पुरुष कहते हैं।
जैसे - सर्पभीतः (सर्पात भीत:-सौंप से डरा हुआ)
पष्ठी तत्पुरुष –जिस तत्पुरुष समास के पूर्वपद में पष्ठी विभक्ति हो उसे पष्ठी तत्पुरुष कहते है।
जैसे- अशोकवृक्षः (अशोकस्य वृक्षः - अशोक का वृक्ष)
सप्तमी तत्पुरुष-जिस तत्पुरुष समास के पूर्वपद में सप्तमी विभक्ति हो तो सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं।
जैसे- रणवीरः (रणे वीरः - रण में वीर)
समास Question 3:
'पुरुषसिंहः' इत्यत्र समासः कः?
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 3 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'पुरुषसिंहः' इसमें समास है -
स्पष्टीकरण -
'पुरुषसिंहः' = (पुरुषः सिंहः इव) यह उपमानोत्तरपद कर्मधारय समास है। Key Pointsकर्मधारय समास -
सूत्र - "तत्पुरुष: समानाधिकरणः कर्मधारयः।"
सूत्रार्थ - जब तत्पुरुष समास के दोनों पदों में एक ही विभक्ति अर्थात् समान विभक्ति होती है, तब वह समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। इसी समास को कर्मधारय नाम से जाना जाता है।
- इस समास में साधारणतया पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है।
भेद तथा उदाहरण -
- विशेषणपूर्वपद: - नीलो मेघ: - नीलमेघ
- विशेषणोत्तरपद: - वैयाकरण: खसूचि: - वैयाकरणखसूचि:
- विशेषणोभयपद: - शीतम् उष्णम् - शीतोष्णम्
- उपमानपूर्वपद: - मेघ इव श्याम: - मेघश्याम:
- उपमानोत्तरपद: - नर: व्याघ्र: इव - नरव्याघ्र:
- अवधारणापूर्वपद: - विद्या इव धनम् - विद्याधनम्
- सम्भावनापूर्वपद: - आम्र: इति वृक्ष: - आम्रवृक्ष:
- मध्यमपदलोप: - शाकप्रिय: पार्थिव: - शाकपार्थिव:
- मयूरव्यंसकादि: - अन्यो देश: - देशान्तरम् आदि ।
अतः, 'पुरुषसिंहः' = (पुरुषः सिंहः इव) यह उपमानोत्तरपद कर्मधारय समास है।
समास Question 4:
'नीलमेघः' इत्यस्य विग्रहवाक्यं किम्?
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 4 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'नीलमेघः' इसका विग्रह वाक्य क्या होगा?
स्पष्टीकरण -
'नीलमेघः' इसका विग्रह वाक्य होगा - नीलो मेघः.(कर्मधारय समास)
Important Pointsकर्मधारय समास -
सूत्र - "तत्पुरुष: समानाधिकरणः कर्मधारयः।"
सूत्रार्थ - जब तत्पुरुष समास के दोनों पदों में एक ही विभक्ति अर्थात् समान विभक्ति होती है, तब वह समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। इसी समास को कर्मधारय नाम से जाना जाता है।
- इस समास में साधारणतया पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है।
भेद तथा उदाहरण -
- विशेषणपूर्वपद: - नीलो मेघः - नीलमेघ
- विशेषणोत्तरपद: - वैयाकरण: खसूचिः - वैयाकरणखसूचि:
- विशेषणोभयपद: - शीतम् उष्णम् - शीतोष्णम्
- उपमानपूर्वपद: - मेघ इव श्यामः - मेघश्याम:
- उपमानोत्तरपद: - नर: व्याघ्रः इव - नरव्याघ्र:
- अवधारणापूर्वपद: - विद्या इव धनम् - विद्याधनम्
- सम्भावनापूर्वपद: - आम्र: इति वृक्षः - आम्रवृक्ष:
- मध्यमपदलोप: - शाकप्रिय: पार्थिवः - शाकपार्थिव:
- मयूरव्यंसकादि: - अन्यो देशः - देशान्तरम् आदि ।
अतः, 'नीलमेघः' इसका विग्रह वाक्य होगा - नीलो मेघः.(कर्मधारय समास)
समास Question 5:
देशाटनम् इत्यत्र समासः अयमस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 5 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'देशाटनम्' इसमें समास है?
स्पष्टीकरण -
देशाटनम्
समास विग्रह - देशेषु अटनम्
समास - सप्तमी तत्पुरुष
Important Pointsतत्पुरुष समास -
सुत्र - "उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः"
सूत्रार्थ - जिस समास में उत्तरपद (पर) का अर्थ प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण - देशेषु अटनम् = देशाटनम् इस पद में पूर्वपद 'देशेषु' प्रधान न होकर उत्तर पद 'अटनम्' प्रधान है, इसलिए 'देशाटनम्' यह तत्पुरुष समास हुआ।
तत्पुरुष समास के भेद - तत्पुरुष समास के छः भेद है- द्वितीया तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष , चतुर्थी तत्पुरुष, पंचमी तत्पुरुष षष्ठी तत्पुरुष और सप्तमी तत्पुरुष
उदाहरण -
- कृष्णं श्रितः – कृष्णश्रितः – (द्वितीयातत्पुरुषः)
- हरिणा त्रातः – हरित्रातः – (तृतीयातत्पुरुषः)
- भूतेभ्यः बलिः – भूतबलिः – (चतुर्थीतत्पुरुषः)
- चोराद् भयम् – चोरभयम् – (पञ्चमीतत्पुरुषः)
- राज्ञः पुरुषः – राजपुरुषः – (षष्ठीतत्पुरुषः)
- अक्षेशु शौण्डः – अक्षशौण्डः – (सप्तमीतत्पुरुषः)
अतः 'देशाटनम्' तत्पुरुष समास है।
Additional Informationद्विगु - पञ्चगवम् =पञ्चानां गवानां समाहरः ।
अव्ययीभाव - निर्मक्षिकम् = मक्षिकाणाम् अभाव।
कर्मधारय - नीलोत्पलम् = नीलम् उत्पलम्।
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''महाकविः" शब्द में प्रयुक्त समास है
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण -
- महाकवि शब्द में कर्मधारय समास है।
- समास विग्रहः = महान् कविः - 'महाकवि:'
- विशेषण = महान्, विशेष्य = कविः
सूत्र - विशेषणं विशेष्येण बहुलम्।
- नियम - यदि प्रथम शब्द विशेषण हो और दूसरा शब्द विशेष्य हो तो, वहाँ कर्मधारय समास होता है। इसे विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास कहते हैं। यहाँ दोनों पद समान विभक्ति में रहते हैं। इसमें कहीं विशेषण-विशेष्य तो कही उपमान-उपमेय विद्यमान रहता है।
उदाहरण -
- नीलम् उत्पलम् - नीलोत्पलम्
- इस नियमानुसार महाकवि (महान् कवि) में कर्मधारय समास है। इस समास में साधारणतया पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है।
अतः स्पष्ट है कि यहाँ महाकविः में कर्मधारय समास है।
Additional Information
समसनं समासः अर्थात् संक्षिप्त होने को समास कहते हैं। समास एक संज्ञा है। दो या दो से अधिक शब्दों का जब समास होकर एक पद बनता है, तो उसे समास कहते हैं।
समास में दो पद होते हैं - 1. पूर्व पद, 2. उत्तर पद
समास के मुख्यतः 4 भेद है।
- अव्ययीभाव
- तत्पुरुष
- बहुव्रीहि
- द्वन्द्व
(1) अव्ययीभाव समास - ‘पूर्वपदार्थप्रधानोSव्ययीभावः’ अर्थात् जिस पद में पूर्व पद की प्रधानता हो या पद का आरम्भ किसी अव्यय पद से हो रहा हो, वहाँ अव्ययीभाव समास होता है। उदाहरण -
- रूपस्य योग्यम् - अनुरूपम्
- रामस्य पश्चात् - अनुरामम्
(2) तत्पुरुष समास - ‘उत्तरपदप्रधानो तत्पुरुषः’ अर्थात जिस पद में उत्तर पद प्रधान होता है, वहाँ तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -
- सुखम् आपन्नः - सुखापन्नः
- कूपं पतितः - कूपपतितः
तत्पुरुष समास के मुख्यतः दो भेद होते हैं -
- व्यधिकरण तत्पुरुष समास
- समानाधिकरण तत्पुरुष
1. व्यधिकरण तत्पुरुष समास के सात (7) भेद होते हैं, जो निम्नलिखित हैं -
द्वितीया तत्पुरुष - जहाँ श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यस्त, प्राप्त और आपन्न इन शब्दों का संयोग होता है, वहाँ द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -
- शोकं पतितः - शोकपतितः
तृतीया तत्पुरुष - जहाँ तृतीयान्त शब्द के साथ पूर्व, सदृश, सम शब्द आता है, तो वहाँ तृतीया तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -
- पित्रा समः - पितृसमः
चतुर्थी तत्पुरुष - जहाँ पूर्व पद चतुर्थी विभक्ति में होता है अथवा बलि, हित, सुख, रक्षित इन शब्दों को संयोग होता है, वहाँ चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -
- ब्राह्मणाय हितम् - ब्राह्मणहितम्
पञ्चमी तत्पुरुष - जहाँ भय, भीत, भीति इन शब्दों का संयोग होता है, वहाँ पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -
- व्याघ्राद् भीतिः - व्याघ्रभीतिः
षष्ठी तत्पुरुष - जब पूर्व पद षष्ठी विभक्ति में होता है, तो वहाँ षष्ठी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -
- देवानां भाषा - देवभाषा
सप्तमी तत्पुरुष - जब पूर्व पद सप्तमी विभक्ति में रहता है अथवा शौण्ड (चतुर), धूर्त, कितव (शठ), प्रवीण, कुशल, पण्डित इन शब्दों का संयोग होता है, तो वहाँ सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -
- सभायां पण्डितः - सभापण्डितः
नञ् तत्पुरुष - जब पूर्व पद न शब्द हो, तथा उत्तर पद कोई संज्ञा या विशेषण हो तो, वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। उदाहरण -
- न कृतम् - अकृतम्
2. समानाधिकरण तत्पुरुष समास के दो भेद होते हैं -
- कर्मधारय तत्पुरुष
- द्विगु तत्पुरुष समास
(1) कर्मधारय तत्पुरुष समास - ऐसा तत्पुरुष समास जहाँ विशेषण-विशेष्य और उपमान-उपमेय का सम्बन्ध होता है, वह कर्मधारय समास होता है। उदाहरण-
- पीतम् उत्पलम् - पीतोत्पलम्
- घन इव श्यामः - घनश्यामः
(2) द्विगु तत्पुरुष समास - जहाँ प्रथम पद संख्यावाची होता है, वहाँ द्विगु समास होता है। यह तत्पुरुष समास का ही भेद है। उदाहरण -
- त्रयानां भुवनानां समाहारः - त्रिभुवनम्
- चतुर्णां भुजानां समाहारः - चतुर्भुजम्
(3) बहुव्रीहि समास - ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ दो या दो से अधिक समस्त शब्द किसी अन्य पद को इंगित करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। उदाहरण -
- महान् आत्मा यस्य सः (बुद्धः) - महात्मा
- दश आननानि यस्य सः (रावणः) - दशाननः
बहुव्रीहि समास के दो भेद हैं-
- समानाधिकरण बहुव्रीहि- (जहाँ दोनों शब्द प्रथमान्त होते हैं। जैसे - पीतम् अम्बरम् यस्य सः)
- व्यधिकरण बहुव्रीहि - (जहाँ दोनों शब्द प्रथमान्त नहीं होते हैं। एक प्रथमान्त होता है और दूसरा शब्द षष्ठी या सप्तमी विभक्ति में होता है। जैसे - चन्द्र शेखरे यस्य सः)
(4) द्वन्द्व समास - ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद (पूर्व पद एवं उत्तर पद) प्रधान होते हैं, वहाँ द्वन्द्व समास होता है। उदाहरण -
- रामश्च लक्ष्मणश्च भरतश्च - रामलक्ष्मणभरताः
- पाणी च पादौ च - पाणिपादम
'नीलोत्पलम्' में कौन-सा समास है?
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFसमस्तपद:– नीलोत्पलम्
समास विग्रह:– नीलम् उत्पलम्
स्पष्टिकरण:– उपर्युक्त समास में ‘नीलम् (नीला रंग)’ विशेषण और ‘उत्पलम् (कमल)’ विशेष्य है।
समास में यदि पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य हो, तो उसे विशेषण पूर्वपद कर्मधारय कहते है।
अतः स्पष्ट होता है कि ‘नीलोत्पलम्’ में कर्मधारय समास होता है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
संस्कृते समासः कतिविधः ?
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्नानुवाद - संस्कृत में समास कितने प्रकार के होते हैं ?
स्पष्टीकरण -
- संस्कृत में पाँच प्रकार के समास बताये गये हैं।
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:-‘ प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:-श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः(हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
अतः उपर्युक्त विवरणों से स्पष्ट होता है कि समास पञ्चविध (पाँच प्रकार के) होते हैं।
'सूर्योदय∶' पद में प्रयुक्त समास है
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण -
समस्तपद:– सूर्योदय∶
अर्थ:- सूर्यस्य उदयः
स्पष्टिकरण:– उपर्युक्त समास का अर्थ ‘सूर्य का उदय' से स्पष्ट होता है की यहाँ पूर्वपद का षष्ठी विभक्ति मे प्रयोग हुआ है।
'उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः' इस सूत्र के अनुसार जब उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है। 'सूर्योदयः' इस पद का विग्रह 'सूर्यस्य उदयः' होता है। अतः 'षष्ठीः' इस सूत्र के अनुसार यहा 'षष्ठी तत्पुरुष' समास होता है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
'पञ्चगंगम्' इत्यत्र समासः अस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्नानुवाद - 'पञ्चगंगम्' यहाँ समास है-
स्पष्टीकरण -
- समस्तपद- पञ्चगङ्गम्
- समासविग्रह- पञ्चानां गङ्गानां समाहारः।
अर्थ- 'पांच गङ्गाओं का समूह' यहाँ उत्तर पद प्रधान है, अतः तत्पुरुष समास और पूर्वपद संख्या वाची होने से द्विगु तत्पुरुष समास प्राप्त था, परन्तु 'नदीभिश्च' सूत्र के अनुसार संख्यावाची शब्द के पश्चात् यदि नदी विशेष का नाम आये, तो वहाँ द्विगु समास न होकर 'अव्ययीभाव समास' होता है।
यथा -
- पञ्चगङ्गम् - पञ्चानां गङ्गानां समाहारः
- पञ्चयमुनम् - पञ्चानां यमुनां समाहारः
- द्वियमुनम् - द्वयोः यमुनयोः समाहारः
अतः स्पष्ट है कि पञ्चगंगम् में अव्ययीभाव समास उचित विकल्प है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
'चन्द्रशेखरः' पदस्यास्य विग्रहः करणीयः-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्नानुवाद - 'चन्द्रशेखरः' इस पद का विग्रह करें-
समस्तपद- चन्द्रशेखरः
समासविग्रह- चन्द्रः शेखरे यस्य सः
अर्थ- चन्द्रमा है जिसके सिर पर (शिव)।
स्पष्टीकरण - यहाँ पूर्वपद 'चन्द्र' और उत्तरपद 'शेखर' है। परन्तु यहाँ सः(शिव) यह अन्यपद प्रधान है। जब समस्तपद में अन्यपद प्रधान होता है तब वह समास अन्यपद प्रधान बहुव्रीहि समास होता है। और दोनों में अलग अलग विभक्ति होने के कारण यहाँ व्यधिकरण बहुव्रीहि समास है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
- चन्द्रः शेखरे यस्य सः = चन्द्रशेखरः (शिव)
'यूपदारु' पद में समास है
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDF‘यूपदारु’ में तत्पुरुषः समास है।
- यूपदारु का विग्रह 'यूपाय दारु' होगा जिसका अर्थ है खूंटे के लिए लकड़ी।
- यह समास उत्तरपद प्रधान है और प्रथम पद चतुर्थी होने से 'चतुर्थी तदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः' इस सूत्र से चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
'गृहगतः' उदाहरणमिदं विद्यते-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्नानुवाद - 'गृहगतः' यह उदाहरण है-
शब्द - 'गृहगतः'
समासविग्रह - गृहं गतः
सूत्र:- ‘द्वितीया श्रितातीतपतितगतात्यस्तप्राप्तापन्नैः’ सूत्र से गतः पद होने के कारण यहाँ द्वितीया तत्पुरुष समास है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:-प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:-
- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:-
- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
1) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
2) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में 'च' जुडता है। जैसे:- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5)बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
'राजपुरुषः' अस्मिन् पदे समासः अस्ति
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न अनुवाद - राजपुरुषः इस पद में समास है।
समास विग्रह - राज्ञः पुरुषः
सामासिक पद - राजपुरुषः
समास - तत्पुरुष समास (षष्ठी विभक्ति)
स्पष्टीकरण -
लघुसिद्धान्तकौमुदी के ‘उत्तरपदप्रधान तत्पुरुषः' इस सूत्र के अनुसार जिस समास में उत्तरपद प्रधान होता है वह तत्पुरुष समास है। तत्पुरुष समास में दोनो पदो का संबंध विभक्ति से दिखाया जाता है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
राजपुरुष इस सामासिक पद में षष्ठी इस सूत्र से राज्ञः पुरुषः यह समास विग्रह होता है।
उदाहरण
- सूर्यस्य उदयः - सूर्योदयः।
- देवानां भाषा - देवभाषा।
- राज्ञः पुत्रः - राजपुत्रः।
अतः यह स्पष्ट होता है कि, राजपुरुष यह तत्पुरुष समास या षष्ठी तत्पुरुष समास है।
Additional Information
‘समसनं समासम्’ संक्षिप्त करना ही समास होता है अर्थात् दो या दो से अधिक पदों के विभक्ति, समुच्चय बोधक च आदि को संक्षेप करके एक पद बनाने को समास कहते है- ‘अनेकाषां पदानां एकपदी भवनं समासः।’ इसमें पूर्व और उत्तर दो पद होते हैं। यथा-
- पित्रा युक्तः = पितृयुक्तः
- यूपाय दारु = यूपदारु
- माता च पिता च = पितरौ
समास भेद:- प्रायः समास के पाँच प्रकार बताये गए हैं-
(1) केवलसमास:- ‘विशेषसंज्ञाविनिर्मुक्तः केवल समासः’ अर्थात् विशेष संज्ञा रहित जहाँ केवल समास हो। जैसे:- पूर्वं भूतः = भूतपूर्वः
(2) अव्ययीभाव:- ‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो’ अर्थात् जहाँ पूर्व पद प्रधान हो तथा अव्यय हो। जैसे:- मतिम् अनतिक्रम्य = यथामति
(3) तत्पुरुष:- ‘उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः’ अर्थात् जहाँ उत्तरपद प्रधान हो दोनों पद में अलग-अलग और कभी-कभी समान विभक्ति होती है तथा पूर्वपद के विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के भेद:- इसके दो भेद होते हैं-
A) व्याधिकरण तत्पुरुष:- इसके सात प्रकार होते हैं-
द्वितीया तत्पुरुष:- श्रित, अतीत, आगतादि शब्द यदि उत्तरपद हो तो द्वितीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- कृष्णं श्रितः = कृष्णश्रित
- दुःखम् अतीत = दुःखातीत
- सुखाद् अपेतः = सुखापेतः।
तृतीया तत्पुरुष:- हीन, विद्ध आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सर्पेण दष्टः = सर्पदष्टः
- शरेण विद्धः = शरविद्धः
- विद्यया हीनः = विद्याहीनः।
चतुर्थी तत्पुरुष:- बलि, अर्थ, तदर्थ आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो चतुर्थी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- भूताय बलिः = भूतबलिः
- स्नानाय इदम् = स्नानार्थम्
- तस्मै इदम् = तदर्थम्।
पञ्चमी तत्पुरुष:- भय, मुक्त, पतित आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो पञ्चमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- चौरद् भयम् = चौरभयम्
- रोगात् मुक्तः = रोगमुक्तः
- स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः
षष्ठी तत्पुरुष:- जब समस्त पद में दोनों पद एक दुसरे से सम्बन्धित हो तो षष्ठी तत्पुरुष होता है। जैसे-
- राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः
- गङ्गायाः जलम् = गङ्गाजलम्
सप्तमी तत्पुरुष:- शौण्ड, चतुर, कुशल आदि शब्द यदि उत्तरपद हो तो सप्तमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- सभायां पण्डितः = सभापण्डितः
- कर्मणि कुशलः = कर्मकुशलः
नञ् तत्पुरुष:- जहाँ पूर्वपद अ, अन् अथवा न हो वहाँ नञ् तत्पुरुष समास होता है। जैसे:-
- न ज्ञानम् = अज्ञानम्
- न आदि = अनादि
- न आस्तिक = अनास्तिक
B) समानाधिकरण तत्पुरुष:- इसके दो भेद होते हैं-
कर्मधारय:- विशेषण-विशेष्य तथा उपमानोपमेय पदों का परस्पर समास हो तो कर्मधारय समास होता है। जैसे:-
- नीलम् उत्पलम् = नीलोत्पलम्
- चन्द्र इव मुखम् = चन्द्रमुखम्
द्विगु:- जब विशेषण संख्यावाची हो तो द्विगु समास होता है। जैसे:-
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
(4) द्वन्द्व:- ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः’ जहाँ दोनों पद प्रधान हो। इसके विग्रह में च जुडता है।
- माता च पिता च = पितरौ
- हरिः च हरः च = हरिहरौ
इसके तीन प्रकार हैं-
- इतरेतर द्वन्द्व
- एकशेष द्वन्द्व
- समाहार द्वन्द्व
(5) बहुव्रीहि:- ‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः’ जहाँ अन्य पद प्रधान हो। जैसे:-
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (हरिः)
- लम्बः उदरः यस्य सः = लम्बोदरः (गणेशः)
'पाणिपादम्' इति समस्त पदस्य विग्रहः अस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
समास Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्नानुवाद - 'पाणिपादम्' इस समस्त पद का विग्रह है-
स्पष्टीकरण - पाणिपादम् का समास विग्रह होगा - पाणी च पादौ च। यहाँ द्वन्द्व समास है।
पद - पाणिपादम्
समास विग्रह - पाणी च पादौ च
समास - द्वन्द्व समास
'चार्थे द्वन्द्वः' सूत्र से 'पाणिपादम्' में द्वन्द्वः समास होकर 'पाणी च पादौ च तेषां समाहारः' यह विग्रह होता है।
Additional Information
द्वन्द्व समास तीन प्रकार का होता हैं -
- इतरेतर द्वन्द्वः - वैसे तो द्वन्द्व समास युगल अर्थात् जोड़े में ही होता है, किन्तु कहीं-कहीं त्रितय अर्थात् तीन के समूह में भी हो जाता है, जैसे- रामः च कृष्णः च अर्जुनः च -रामकृष्णार्जुनाः। किन्तु इतरेतर द्वन्द्व समास में प्रायः जोड़ों के बीच में समास किया जाता है; समास करने के बाद समस्तपद का लिंग वही होगा, जो उत्तरपद का होगा।
- समाहार द्वन्द्वः - इस समास के दोनों पद प्रधान हों, ऐसा नहीं है। बल्कि समस्तपद से सामुदायिक अर्थ प्रतीत होता है। इसकी अन्य विशेषता यह है कि यह सदा एकवचन में और नपुंसकलिंग होता है। जैसे - शीतं च उष्णं च अनयोः समाहारः - शीतोष्णम्। पाणी च पादौ च तेषां समाहारः
- एकशेष द्वन्द्वः - इस समास में युगल शब्द (जोड़े में शब्द) होते हैं और समास बनाते समय दोनों में से किसी एक पद को ही प्रमुख मानकर उनका समास बनाया जाता है। यदि दो पद हो और द्विवचन में अर्थ निकले तो अन्त में द्विवचन एवं बहुवचन या बहुत संख्या में होने वाले शब्दों में बहुवचन अन्त में होता है। जैसे - माता च पिता च पितरी - पितरौ।