व्याकरण MCQ Quiz - Objective Question with Answer for व्याकरण - Download Free PDF
Last updated on Jun 17, 2025
Latest व्याकरण MCQ Objective Questions
व्याकरण Question 1:
"खरवसानयोः _____" इति सूत्रस्य रिक्तस्थानं पूरणीयम्-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 1 Detailed Solution
प्रश्न का अनुवाद - "खरवसानयोः _____" रिक्त स्थान की पूर्ति करें।
स्पष्टीकरण - उपरोक्त प्रश्न के अनुसार सही पर्याय ''विसर्जनीयः'' है। इस तरह पूर्ण सूत्र होगा - खरवसानयोर्विसर्जनीयः।
Key Pointsपाणिनीय अष्टाध्यायी के अनुसार विसर्ग के बारे में बताते हुए यह सूत्र आया है-
सूत्र - खरवसानयोर्विसर्जनीयः।
खरि अवसाने च पदान्तस्य रेफस्य विसर्गः। अर्थात् ''खर'' परे रहते पदान्त रेफ को विसर्ग होता है।
खर् प्रत्याहार परे रहते या विराम होने पर शब्द के अन्तिम र् को विसर्ग हो जाता है। यह र् शब्द के अन्तिम स् के स्थान पर होता है (ससजुषो रुः)।
उदाहरण-
बालकस् + चलति - बालकः चलति। यहाँ पहले स् को र् हुआ फिर र् के स्थान पर उपर्युक्त नियम से खर् प्रत्याहार वाले वर्ण च् के परे रहते विसर्ग हो गया।
अन्य उदाहरण -
- हरिस् + कथयति= हरिः कथयति ।
- देवदत्तस् + पालयति= देवदत्तः पालयति।
इस प्रकार रिक्त स्थान में विसर्जनीयः शब्द आयेगा। जिससे पूर्ण सूत्र होगा - खरवसानयोर्विसर्जनीयः ।
व्याकरण Question 2:
"हलन्त्यम्" इति सूत्रेण संज्ञा भवति-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 2 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - "हलन्त्यम्" इस सूत्र से संज्ञा होती है-
स्पष्टीकरण - हलन्त्यम् इस सूत्र के द्वारा इत् संज्ञा होती है। यह सूत्र इत्संज्ञा विधायक सूत्र है।
सूत्र - हलन्त्यम्।
व्याख्या - उपदेशेऽन्त्यं हलित्स्यात्। उपदेश आद्योच्चारणम्। सूत्रेष्वदृष्टं पदं सूत्रान्तरादनुवर्तनीयं सर्वत्र। अर्थात् उपदेश अवस्था में अन्त्य हल् इत्संज्ञक होता है। उपदेश अर्थात् प्रथम उच्चारण को उपदेश कहते हैं। सूत्रों के अर्थ को परा करने के लिए जो पद कम हो, उसे आवश्यकतानुसार अन्य सूत्रों से ले लेना चाहिए।
चौदह माहेश्वर सूत्रों का प्रथम उच्चारण किया गया है। इन सूत्रों का प्रथम उच्चारण होने से इनका अन्तिम वर्ण इत्संज्ञक है।
उदाहरण - अइउण्, ऋलृक् - इन दोनों सूत्रों में अन्तिम वर्ण ण् एवं क् ये दोनों इत्संज्ञक हैं।
अतः स्पष्ट है कि हलन्त्यम् सूत्र से इत्संज्ञा होती है।
व्याकरण Question 3:
'र' प्रत्याहारे वर्णाः सन्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 3 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'र' प्रत्याहार में वर्ण हैं-
स्पष्टीकरण -
- र प्रत्याहार में दो वर्ण हैं।
- र प्रत्याहार हयवरट् सूत्र के र से आरम्भ होकर लण् के ल् तक ये दो वर्ण होते हैं।
- यहाँ लण् सूत्र में अ को अनुनासिक माना गया है - लँण्।
- इस तरह ल् अँ ण्। अनुनासिक अ की इत् संज्ञा हो जाती है।
- इस तरह यहाँ अ तक दो वर्ण बचते हैं - र और ल।
अतः स्पष्ट है कि र प्रत्याहार में दो वर्ण होते हैं।
Important Points
- संस्कृत व्याकरण की रचना महर्षि पाणिनि द्वारा की गई।
- पाणिनि व्याकरण में 14 सूत्र है। जिन्हें माहेश्वर सूत्र भी कहते हैं।
- इन 14 सूत्रों के आधार पर 42 प्रत्याहारों की रचना होती है।
- इन 14 सूत्रों के अन्तिम वर्ण की अन्त्य संज्ञा होने से उनकी गणना नहीं की जाती है।
- र प्रत्याहार - र, ल
- पहले चार सूत्रों में स्वरों की गणना की गयी है। इसे अच् प्रत्याहार कहते हैं।
- हयवरट् सूत्र से लेकर हल् अन्तिम सूत्र तक व्यंजनों की गणना की गयी है। इसे हल् प्रत्याहार कहते हैं।
14 माहेश्वर सूत्र निम्नलिखित है -
व्याकरण Question 4:
अधोक्तमित्संज्ञाविधायकं सूत्रमस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 4 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - निम्नलिखित में इत्संज्ञा विधायक सूत्र है-
स्पष्टीकरण - दिये गये विकल्पों में हलन्त्यम् इत्संज्ञा विधायक सूत्र है।
सूत्र - हलन्त्यम्।
व्याख्या - उपदेशेऽन्त्यं हलित्स्यात्। उपदेश आद्योच्चारणम्। सूत्रेष्वदृष्टं पदं सूत्रान्तरादनुवर्तनीयं सर्वत्र। अर्थात् उपदेश अवस्था में अन्त्य हल् इत्संज्ञक होता है। उपदेश अर्थात् प्रथम उच्चारण को उपदेश कहते हैं।सूत्रों के अर्थ को परा करने के लिए जो पद कम हो, उसे आवश्यकतानुसार अन्य सूत्रों से ले लेना चाहिए।
चौदह माहेश्वर सूत्रों का प्रथम उच्चारण किया गया है। इन सूत्रों का प्रथम उच्चारण होने से इनका अन्तिम वर्ण इत्संज्ञक है।
अतः स्पष्ट है कि दिये गये विकल्पों में हलन्त्यम् इत्संज्ञा विधायक सूत्र है।
Additional Information
अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -
- आदिरन्त्येन सहेता - यह सूत्र प्रत्याहार संज्ञा विधायक सूत्र है।
- परः सन्निकर्ष संहिता - यह संहिता संज्ञा विधायक सूत्र है।
व्याकरण Question 5:
"ईदूदेद्द्विवचनम् _____" इत्यत्र रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत।
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 5 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - "ईदूदेद्द्विवचनम् _____" यहाँ रिक्तस्थान पूरा करें।
स्पष्टीकरण - रिक्त स्थान में प्रगृह्यम् पद आयेगा। इस तरह पूर्ण सूत्र होगा - ईदूदेद्द्विवचनम् प्रगृह्यम्।
'ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम्' यह प्रगृह्य संज्ञा विधायक सूत्र है। इस सूत्र के अनुसार यदि द्विवचनान्त शब्द के अन्त में ई, ऊ, ए आता है और बाद में यदि कोई स्वर आता है तो ई, ऊ, ए वैसे ही रहते हैं।
उदाहरण -
- गंगे + अमू - गंगे अमू
- मुनी + इमौ - मुनी इमौ
अतः स्पष्ट है कि रिक्त स्थान में प्रगृह्यम् पद आयेगा।
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माहेश्वर सूत्रों की संख्या हैं
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण:- पाणिनी ने अपने अष्टाध्यायी में १४ माहेश्वर सूत्र बताये है। वह इसप्रकार हैं-
१४ माहेश्वर सूत्र:- १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।
इन माहेश्वर सूत्र को प्रत्याहार सूत्र के साथ 'चतुर्दश सूत्र' से भी जाने जाते है।
अतिरिक्त जानकारी
उत्पत्ति:- एक आख्यायिका के अनुसार पाणिनि को यह सूत्र भगवान शङ्कर से प्राप्त हुए।
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥
अर्थ:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।"
इस तरह से इन माहेश्वर सूत्रोंकी उत्त्पत्ति है। इन्हे शिवसूत्र भी कहते हैं। इन्ही १४ शिवसूत्रोंको पाणिनि ने भगवान शङ्कर से प्राप्त किया और उनसे अष्टाध्यायी के प्रत्याहार बनाये। इसलिए इन सूत्रों को प्रत्याहार विधायक सूत्र भी कहते हैं।
'उच्चरति' शब्द में जुड़ा उपसर्ग है-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFधात रूपों तथा धातुओ से निष्पन्न शब्दरूपों से पूर्व प्रयुक्त होकर उनके अर्थ का परिवर्तन करने वाले शब्दों को उपसर्ग कहते है -
"उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।
प्रहाराहार-संहार-विहार-परिहारवत्॥"
उदाहरण
उपसर्ग | निर्मित शब्द |
वि | विराम, विश्राम |
परि | परिहार, परिपूर्ण |
प्र | प्रगति, प्रतिष्ठा |
उत् |
उत्थान, उद्घाटन |
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि 'उच्चरति' पद में "उत्" उपसर्ग प्रयुक्त है।Hintसंस्कृत में कुल 22 उपसर्ग माने गये हैं-
उपसर्ग |
अर्थ |
उदाहरण |
प्र |
प्रकृष्ट |
प्रगति, प्रतिष्ठा |
परा |
निषेध, विपरित |
पराजितं पराभवति |
अप |
न्यूनता या हीनता |
अपकरोति, अपहरति |
सम् |
अच्छा |
संगच्छति, संस्करोति |
अपि | ढ़कना | अप्यस्ति |
अनु |
अनुकरण |
अनुगमनं अनुकरोति |
अव |
निचे |
अवगच्छति, अवजानन्ति |
निर् |
निषेध |
निर्गच्छति, निराकरोति |
निस् |
निषेध |
निष्कारणं, निस्सरति |
दुस् |
कठिन, दुष्कर |
दुष्टः, दुष्प्रयोजन |
दुर् |
कठिन, दुष्कर |
दुर्गति, दुर्बोध्य |
वि |
विशिष्ट |
विजयते, विगत |
आङ् |
सिमा |
आजिवनम्, आकण्ठम् |
नि |
निचे |
निगदति, निपतति |
अधि |
प्रधानता या आधार |
अधिराजते, अधिहरि |
अति |
अतिशय |
अत्यन्त, अत्याचारः |
सु |
अच्छा |
स्वागतं, सुशोभते |
उत् |
ऊँचा |
उत्कर्षं, उत्पतति |
अभि |
समीप |
अभ्यागतः, अभ्यासः |
प्रति |
विपरित |
प्रत्युपकारः, प्रत्यवदत् |
परि |
चारो ओर |
पर्यावरणं, परिवर्तनम् |
उप |
समीप |
उपकार, उपहार |
मातृ शब्द का पंचमी विभक्ति का एकवचन रूप है-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDF'मातृ' यह प्रातिपदिक 'ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द है। इसके विभिन्न विभक्ति-वचन में रूप निम्नलिखित हैं-
विभक्ति |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमा |
माता |
मातरौ |
मातरः |
द्वितीया |
मातरम् |
मातरौ |
मातृ |
तृतीया |
मात्रा |
मातृभ्याम् |
मातृभिः |
चतुर्थी |
मात्रे |
मातृभ्याम् |
मातृभ्यः |
पन्चमी |
मातुः |
मातृभ्याम् |
मातृभ्यः |
षष्ठी |
मातुः |
मात्रोः |
मातृणाम् |
सप्तमी |
मातरि |
मात्रोः |
मातृषु |
सम्बोधन |
हे माता! |
हे मातरौ! |
हे मातरः! |
उपर्युक्त सारणी के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि 'मातृ' शब्द की पञ्चमी विभक्ति एकवचन में 'मातुः' रूप होता है।
Additional Information
मातृ की तरह दुहितृ, स्वसृ, ननादृ यह कुछ अन्य 'ऋकारान्त' स्त्रीलिंग पद है।
'नदी' शब्द का सप्तमी, एकवचन रूप है
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDF‘नदी’ का अर्थ ‘नदी’ या 'सरिता' होता है। ‘नद्याम्’ शब्द रूप – ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग सप्तमी एकवचन’ है।
‘नदी’ शब्द का प्रयोग निम्नलिखित है:-
विभक्ति |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमा |
नदी |
नद्यौ |
नद्यः |
द्वितीया |
नदीम् |
नद्यौ |
नदीः |
तृतीया |
नद्या |
नदीभ्याम् |
नदीभिः |
चर्तुथी |
नद्यै |
नदीभ्याम् |
नदीभ्यः |
पन्चमी |
नद्याः |
नदीभ्याम् |
नदीभ्यः |
षष्ठी |
नद्याः |
नद्योः |
नदीनाम् |
सप्तमी |
नद्याम् |
नद्योः |
नदीषु |
सम्बोधन |
हे नदि! |
हे नद्यौ! |
हे नद्यः! |
'दास्यति' क्रियापद में लकार है
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण - 'दास्यति' का अर्थ होता है, 'देगा/देगी' जो भविष्यकाल है।
‘दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-
पुरूष |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमपुरूष |
दास्यति |
दास्यतः |
दास्यन्ति |
मध्यमपुरूष |
दास्यसि |
दास्यथः |
दास्यथ |
उत्तमपुरूष |
दास्यामि |
दास्यावः |
दास्यामः |
अतः स्पष्ट है कि 'दास्यामि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' प्रथम पुरुष एकवचन है।
Hint
लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है।
जैसे - वह पढेगा - सः पठिष्यति।
लृट् लकार क सूत्र = धातु + स्य + लट्लकार प्रत्यय
उदा.
- पठिष्यति = पठ् + स्य + ति
- लेखिष्यति = लिख् + स्य + ति
- भविष्यति = भू-भव् + स्य + ति
- दास्यत्ति = दा + स्य + ति
Additional Information
लकार - संस्कृत में दस लकारों का वर्णन मिलता है -
लकारों के नाम तथा अर्थ -
i)- लट् लकार - 'वर्तमाने लट्' लट् लकार वर्तमान काल अर्थ में होता है। यथा - राम जाता है - रामः गच्छति।
ii)- लोट् लकार - 'आशिषि लिङ् लोटौ' लोट् लकार का प्रयोग विविध अर्थों में होता है -
- आज्ञा - तुम जाओ - त्वं गच्छ।
- प्रार्थना - आप आईये - भवान् आगच्छ।
- अनुमति - मै क्या करू - अहं किं करवाणि।
- आशीर्वाद - दीर्घायु हो - दीर्घायु भव।
iii)- लङ् लकार - 'अनद्यतने लङ्' अनद्यतन भूत काल अर्थ में लङ् लकार का प्रयोग होता है। उसने लिखा - सः अलिखत्।
iv)- विधिलिङ्ग लकार - 'विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ्' विधिलिङ्ग लकार का निम्न अर्थों में प्रयोग होता है -
- विधि - सत्य बोलना चाहिए - सत्यं ब्रूयात्।
- छात्राओं को पढना चाहिए - छात्राः पठेयुः।
- निमन्त्रण - आप आज यहाँ भोजन करें - भवान् अद्य अत्र भक्षयेत्।
- आदेश - तुम पुस्तक पढो - त्वं पुस्तकं पठे।
- प्रश्न - मुझे क्या पढना चाहिए - अहं किम् पठेयम्।
- इच्छा अथवा प्रार्थना - तुम सुखी रखो - यूयं सुखी भवेत।
v)- लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिष्यति।
vi)- लुट् लकार - 'अनद्यतने लुट्' लुट् लकार का प्रयोग अनद्यतन भविष्य के लिए होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिता।
vii)- लृङ्लकार - जहाँ एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित होता है वहाँ हेतुमत् भूत काल अर्थात् लृङ् लकार होता है। यथा - यदि वह पढता तो विद्वान् हो जाता - यदि सः अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् अभविष्यत्।
viii)- आशीर्लिङ् लकार - आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - वह पढे - सः पठ्यात्।
ix)- लुङ् लकार - सामान्य भूत काल में लुङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - उसने पढा - सः अपाठीत्।
x)- लिट् लकार - 'परोक्षेलिट्' लोट् लकार परोक्ष भूत काल अर्थ में होता है। यथा - उसने पढा - सः पपाठ।
'दा' धातु के लृट लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन में रूप बनता है-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDF‘दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-
पुरूष |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमपुरूष |
दास्यति |
दास्यतः |
दास्यन्ति |
मध्यमपुरूष |
दास्यसि |
दास्यथः |
दास्यथ |
उत्तमपुरूष |
दास्यामि |
दास्यावः |
दास्यामः |
अतः स्पष्ट है कि 'दास्यसि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' मध्यम पुरुष एकवचन है।
अव्यय शब्द-समूह हैं
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFअव्यय वह शब्द होते है जिनका कभी व्यय नहीं होता। लिंग वचन कारक आदि सम्बंधित परिवर्तन अव्ययों में नहीं होते। इस तरह से अव्यय अविकारी होते है और नाम, सर्वनाम, विशेषण आदि विकारी होते है।
सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु।
वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम्॥
(अर्थ:- तीनों लिंगों में, सभी विभक्तियों और सभी वचनों में जो समान ही रहता है, रूप में परिवर्तन नहीं होता, वह अव्यय होता है।)
Important Points
विकल्पोंका स्पष्टीकरण:-
- सा, ते, युयम्- ये सर्वनाम हैं।
- अत्र, तत्र, तस्य- अत्र, तत्र अव्यय और तस्य सर्वनाम है।
- सर्वत्र, अधुना, उपरि- ये सभी अव्यय हैं ।
- नमः, सह, जेष्ठः- नमः, सह अव्यय और जेष्ठः सर्वनाम है।
अतः यह स्पष्ट है कि 'सर्वत्र, अधुना, उपरि' शब्द अव्यय ।
'वसन्तर्तुः' मे कौन सन्धि है?
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDF'वसन्तर्तुः' का संधि विच्छेद 'वसन्त + ऋतु:' होगा।
सूत्र- आद् गुणः।
नियम- अ/आ + इ/ई = ए, अ/आ + उ/ऊ = ओ, अ/आ + ऋ/ॠ = अर्
यहाँ सन्धि- वसन्त + ऋतु = वसन्तर्तुः
Important Points
विकल्पों का स्पष्टीकरण–
स्वर सन्धि |
सूत्र |
नियम |
उदाहरण |
यण् सन्धि |
इको यणचि |
इ/ई + विजातीय स्वर = य् उ/ऊ + विजातीय स्वर = व् |
नदी + अत्र = नद्यत्र मधु + इति = मध्विति पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा |
गुण सन्धि |
आद् गुणः |
अ/आ + इ/ई = ए अ/आ + उ/ऊ = ओ अ/आ + ऋ/ॠ = अर् |
उप + इन्द्र = उपेन्द्र यथा + उचितम् = यथोचितम् देव + ऋषि = देवर्षि |
वृद्धि सन्धि |
वृद्धिरेचि |
अ/आ + ए/ऐ = 'ऐ अ/आ + ओ/औ = औ |
मम + एक = ममैक जल + ओघः = जलौघः |
Additional Information
विशेष–
दो शब्दों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते हैं।जैसे-
- विद्या + आलय = विद्यालय।
- रमा + ईश = रमेश
- न + एकः = नैकः
- सम्यक् + ज्ञानम् = सम्यग्ज्ञानम्
संधि के तीन प्रकार हैं - 1. स्वर, 2. व्यंजन और 3. विसर्ग,
संधि |
परिभाषा |
उदाहरण |
स्वर |
स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से विकार उत्पन्न होता है। |
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी महा + ईशः = महेशः |
व्यंजन |
एक व्यंजन से दूसरे व्यंजन या स्वर के मेल से विकार उत्पन्न होता है। |
अहम् + कार = अहंकार उत् + लासः = उल्लास |
विसर्ग |
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के |
दुः + आत्मा = दुरात्मा निः + कपटः = निष्कपटः |
'गाः' पद में विभक्ति वचन है
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDF‘गाः’ का अर्थ होता है गायों को, ओकारान्त 'गो' शब्द का यह द्विवचन रूप है।
ओकारान्त ‘गो’ शब्द का विभिन्न विभक्तियों और वचनों में रूप चलता है -
ओकारान्त ‘गो’ शब्द | |||
विभक्ति |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमा |
गौः |
गावौ |
गावः |
द्वितीया |
गाम् |
गावौ |
गाः |
तृतीया |
गवा |
गोभ्याम् |
गोभिः |
चर्तुथी |
गवे |
गोभ्याम् |
गोभ्यः |
पन्चमी |
गोः |
गोभ्याम् |
गोभ्यः |
षष्ठी |
गोः |
गवोः |
गवाम् |
सप्तमी |
गवि |
गवोः |
गोषु |
सम्बोधन |
हे गौः! |
हे गावौ! |
हे गावः! |
उष्म वर्णों का बोधक प्रत्याहार है -
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDF`शल उष्माणः' सूत्र के अनुसार 'शल्' प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले 'श्, ष्, स्, ह्' वर्ण उष्म वर्ण होते हैं।
Additional Information
`आदिरन्त्येन सहेता' सूत्र के अनुसार आदि और अंत में 'इत्' से प्रत्याहार बनते है। उदा. 'अच्' में 'अ' से लेकर 'च्' तक के 'इत्' के अलावा के वर्ण आते है। पाणिनि के १४ माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बने है-
१४ माहेश्वर सूत्र:- १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।
इन माहेश्वर सूत्रों से अनेकों प्रत्याहार बनते हैं जिनमें कुछ महत्वपूर्ण प्रत्याहार है-
प्रत्याहार:- अण्, अण्, इण्, यण्, अक्, इक्, उक्, एङ्, अच्, इच्, एच्, ऐच्, अट्, अम्, अल्, यम्, ङम्, ञम्, यञ्, झष्, भष्, अश्, हश्, वश्, झश्, जश्, बश्, छव्, यय्, मय्, झय्, खय्, चय्, यर्, झर्, चर्, शर्, हल्, वल्, रल्, झल्। इनमें कुछ प्रमुख इसप्रकार हैं-
- इक्- इ, उ, ऋ, लृ
- यण्- य्, व्, र्, ल्
- अक्- अ, इ, उ, ऋ, लृ
- अच्- सभी स्वर वर्ण- अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ
- एच्- ए, ओ, ऐ, औ
- हल्- सभी व्यञ्जन वर्ण आते हैं।
- हश्- वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पञ्चम वर्ण तथा य्, व्, र्, ल् आते हैं।
- जश्- वर्गों के तृतीय वर्ण - ज्, ब्, ग्, ड, द्।
- शल् - श्, ष्, स्, ह्