काव्य दोष MCQ Quiz in తెలుగు - Objective Question with Answer for काव्य दोष - ముఫ్త్ [PDF] డౌన్లోడ్ కరెన్
Last updated on Mar 26, 2025
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काव्य दोष Question 1:
राजन् ! देहु तुरंग मोहि, अथवा देहु मतंग' इस पंक्ति में कौन सा काव्य दोष है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 1 Detailed Solution
राजन! देहु तुरंग मोहि अथवा देहु मतंग में दुष्क्रमत्व दोष है।
- याचक को पहले हाथी मांगना चाहिए और फिर हाथी न मिलने पर घोडे की याचना करनी चाहिए, किन्तु यहां पहले 'हय' अर्थात् घोडे की और तदुपरान्त हाथी की याचना करके लोक विरुद्ध क्रम रखा गया है अतः दुष्क्रमत्व दोष है।
दुष्क्रमत्व दोष
- जहाँ शास्त्रों अथवा परम्परा में प्रसिद्ध क्रम के विपरीत किसी बात का वर्णन होता है, वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
अन्य उदाहरण-
- "मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।"
- उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है।
- मन का वेग मारुत तथा खगराज के वेग से अधिक होने के कारण उसको सबसे अंत में रखा जाना चाहिए।
क्लिष्टत्व दोष
- जहाँ किसी शब्द का अर्थ आसानी से समझ में न आये वहाँ किलष्टत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- कहत कत परदेशी की बात।
- मन्दिर अरध अवधि बदि हमसौं हरि अहार चलि जात ॥
- वेद, नखत, ग्रह जोरि अरध करि सोई बनत अब खाता।
अक्रमत्व दोष
- जब वाक्य में शब्दों का क्रम ठीक नहीं होता वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
- यह दोष विभक्ति चिह्नों, अव्यय, उपसर्ग आदि क्रम भंग होने से होता है।
- उदाहरण-
- "ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।"
- इस पंक्ति में ‘देना’ शब्द ‘दिखला’ शब्द के पश्चात् आना चाहिए अत: इसमें अक्रमत्व दोष है।
- "ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।"
अप्रतीतत्व दोष
- लोक व्यवहार में न प्रयुक्त होने वाले शास्त्रीय शब्दों का काव्य में प्रयोग होने पर अप्रतीतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।"
- यहां विष शब्द का प्रयोग जल के लिए होता है, जो सामान्यतः लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता अतः अप्रतीतत्व दोष है।
- "विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।"
काव्य दोष Question 2:
काव्य में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग होने पर कौन-सा दोष होता है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 2 Detailed Solution
काव्य में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग होने पर अधिकपदत्व दोष होता है।
Key Pointsअधिकपदत्व दोष-
- जब काव्य में कवि कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जिनको हटा देने पर भी काव्यार्थ ग्रहण में कोई बाधा नहीं होती, वहाँ अधिक पदत्व दोष होता है।
- उदाहरण -
- पुष्प पराग से रंगकर भ्रमर गुंजारता है।
- उपर्युक्त पंक्ति में ‘पुष्प’ शब्द को हटा देने पर भी अर्थ स्पष्ट हो जाता है।
- ‘पुष्प’ का प्रयोग अधिक होने के कारण अधिकपदत्व दोष है।
Important Pointsअक्रमत्व दोष-
- जब वाक्य में शब्दों का क्रम ठीक नहीं होता वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
- यह दोष विभक्ति चिह्नों, अव्यय, उपसर्ग आदि क्रम भंग होने से होता है।
- उदाहरण-
- ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।
- इस पंक्ति में ‘देना’ शब्द ‘दिखला’ शब्द के पश्चात् आना चाहिए अत: इसमें अक्रमत्व दोष है।
दुष्क्रमत्व दोष-
- जहाँ शास्त्रों अथवा परम्परा में प्रसिद्ध क्रम के विपरीत किसी बात का वर्णन होता है, वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।
- उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है।
- मन का वेग मारुत तथा खगराज के वेग से अधिक होने के कारण उसको सबसे अंत में रखा जाना चाहिए।
न्यूनपदत्व दोष-
- जहाँ वाक्य की रचना में किसी शब्द की कमी रह जाती है, वहाँ न्यूनपदत्व दोष होता है।
- न्यूनपदत्व का अर्थ है- पद या शब्द की कमी होना।
- इसमें अर्थ निकालने के लिए पाठक को कुछ शब्द अपनी ओर से जोड़ने पड़ते हैं।
- उदाहरण-
- पानी, पावक, पवन, प्रभु ज्यों असाधु त्यों साधु।
- इस पंक्ति का अर्थ है पानी, अग्नि, वायु तथा ईश्वर सज्जन तथा असज्जन सभी के प्रति समता का व्यवहार करते हैं।
- किन्तु यह अर्थ प्राप्त करने के लिए पाठक को अपनी ओर से कुछ पद जोड़ना आवश्यक है।
- अत: यहाँ न्यूनपदत्व दोष है।
Additional Informationकाव्य दोष-
- जिस तत्व के कारण कविता के अर्थ को समझने में बाधा उत्पन्न होती है और काव्य-सौन्दर्य का अपकर्ष होता है, उसको काव्य-दोष कहते हैं।
- काव्य की रसानुभूति में बाधक तत्वों को काव्य-दोष कहा जाता है।
काव्य दोष Question 3:
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन सा काव्य दोष है?
वाह रे अकबरा, तेरे जे जे ठाठ।
नीचे दरी और ऊपर खाट॥
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 3 Detailed Solution
इसका सही उत्तर विकल्प 3 है। अन्य विकल्प असंगत हैं।
- उपरोक्त पंक्तियों में ग्राम्यत्व दोष है।
- क्योंकि इसमें अकबर को 'अकबरा', सिंहासन को 'खत' तथा कालीन को 'दरी' कहा गया है। इसलिए इसमें ग्राम्यत्व दोष है।
- जहाँ काव्य में असाहित्यिक, भदेस, लोक प्रचलित, गँवारू शब्दों का प्रयोग होता है, वहाँ ग्राम्यत्व काव्य दोष होता है।
- मुख्यार्थ में बाधा पहुँचाने वाले कारकों को काव्य-दोष कहते हैं। काव्य-दोष रसानुभूति में बाधा उत्पन्न करने तथा काव्योद्देश्य में व्यवधान पैदा करने वाले तत्वों को कहते हैं।
काव्य-दोषों की कोई निश्चित संख्या नहीं है। - काव्य के अर्थ को समझने में सामान्यतः चार प्रकार की बाधाएँ होती हैं। काठ्यार्थ को व्यक्त करने में शब्द, वाक्य, रस और अर्थ महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। काव्यार्थ की व्यंजना में आने वाली बाधाएँ इनसे ही सम्बन्धित होती हैं। इनको शब्द दोष, वाक्य दोष, रस दोष तथा अर्थ दोष कह सकते हैं।
अन्य विकल्प:
- च्युत संस्कृति दोष- जब किसी शब्द के प्रयोग में व्याकरण सम्बन्धी दोष होता है तब भाषा के संस्कार से गिरने के कारण वहाँ च्युत संस्कृति दोष होता है।
- अश्लीलत्व दोष- जब कविता में अभद्रतासूचक, असाहित्यिक, लज्जाजनक शब्दों का प्रयोग होता है तो वहाँ कविता में भद्दापन उत्पन्न हो जाता है।
- क्लिष्टत्व दोष- जहाँ किसी शब्द का अर्थ आसानी से समझ में न आये वहाँ किलष्टत्व दोष होता है।
काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो अर्थात् वह जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। काव्य के मुख्य दो प्रकार माने गए हैं-
- स्वरूप के अनुसार काव्य के भेद
- शैली के अनुसार काव्य के भेद
काव्य दोष Question 4:
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन सा दोष है?
जल में उत्पत्ति जल में वास।
जल में नलिनी तोर निवास॥
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 4 Detailed Solution
इसका सही उत्तर विकल्प 4 है। अन्य विकल्प असंगत हैं।
- जल में उत्पत्ति जल में वास। जल में नलिनी तोर निवास॥- पंक्तियों में पुनुरुक्त दोष है।
- यहाँ प्रथम पंक्ति में ‘वास’ तथा द्वितीय पंक्ति में ‘निवास’ शब्द का प्रयोग हुआ है। यह पुनरुक्त दोष है। वास तथा निवास एकार्थक शब्द हैं।
- मुख्यार्थ में बाधा पहुँचाने वाले कारकों को काव्य-दोष कहते हैं। काव्य-दोष रसानुभूति में बाधा उत्पन्न करने तथा काव्योद्देश्य में व्यवधान पैदा करने वाले तत्वों को कहते हैं। काव्य-दोषों की कोई निश्चित संख्या नहीं है।
- काव्य के अर्थ को समझने में सामान्यतः चार प्रकार की बाधाएँ होती हैं। काठ्यार्थ को व्यक्त करने में शब्द, वाक्य, रस और अर्थ महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। काव्यार्थ की व्यंजना में आने वाली बाधाएँ इनसे ही सम्बन्धित होती हैं। इनको शब्द दोष, वाक्य दोष, रस दोष तथा अर्थ दोष कह सकते हैं।
अन्य विकल्प:
- च्युत संस्कृति दोष- जब किसी शब्द के प्रयोग में व्याकरण सम्बन्धी दोष होता है तब भाषा के संस्कार से गिरने के कारण वहाँ च्युत संस्कृति दोष होता है।
- ग्राम्यत्व दोष- जहाँ काव्य में असाहित्यिक, भदेस, लोक प्रचलित, गँवारू शब्दों का प्रयोग होता है, वहाँ ग्राम्यत्व काव्य दोष होता है।
- क्लिष्टत्व दोष- जहाँ किसी शब्द का अर्थ आसानी से समझ में न आये वहाँ किलष्टत्व दोष होता है।
काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो अर्थात् वह जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। काव्य के मुख्य दो प्रकार माने गए हैं-
- स्वरूप के अनुसार काव्य के भेद
- शैली के अनुसार काव्य के भेद
काव्य दोष Question 5:
जहाँ ऐसे शब्दों का प्रयोग हो जो किसी शास्त्र में प्रसिद्ध होने पर भी लोक व्यवहार में अप्रसिद्ध हों, वहाँ कौन सा काव्य दोष होता है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 5 Detailed Solution
जहाँ ऐसे शब्दों का प्रयोग हो जो किसी शास्त्र में प्रसिद्ध होने पर भी लोक व्यवहार में अप्रसिद्ध हों, वहाँ अप्रतीतत्व काव्य दोष होता है।
Key Pointsअप्रतीतत्व दोष-
- लोक व्यवहार में न प्रयुक्त होने वाले शास्त्रीय शब्दों का काव्य में प्रयोग होने पर अप्रतीतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।
- यहां विष शब्द का प्रयोग जल के लिए होता है, जो सामान्यतः लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता अतः अप्रतीतत्व दोष है।
Important Pointsक्लिष्टत्व दोष-
- क्लिष्टत्व शब्द का अर्थ है-कठिन अथवा दुर्बोध होना ।
- काव्य में जहां सरल एवं सुबोध शब्दों का प्रयोग ना करके कठिन और दुर्बोध शब्दों का प्रयोग किया जाता है वहां क्लिष्टतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- कहत कत परदेशी की बात।
मन्दिर अरध अवधि बदि हमसौं हरि अहार चलि जात ॥
वेद, नखत, ग्रह जोरि अरध करि सोई बनत अब खाता ॥ - यह सूरदास का कूट पद है,इसके अर्थ ग्रहण करने में कठिनाई होती है,इसलिए यहाँ क्लिष्टत्व दोष है।
- कहत कत परदेशी की बात।
दुष्क्रमत्व दोष-
- जब क्रम शास्त्र अथवा लोक की वजह से दूषित या अनुचित हो,वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- 'राजन देहु तुरंग मोहि, अथवा देहु मतंग।'
- यहाँ मतंग तुरंग की अपेक्षा अधिक मूल्यवान होता है।
- अतः पहले मांग मतंग की होनी चाहिए जो तुरंग नहीं देगा वह मतंग क्या देगा।
- अतः यहाँ दुष्क्रमत्व दोष है ।
ग्राम्यत्व दोष-
- जहाँ साहित्यिक भाषा में गँवारू शब्दों का प्रयोग किया जाता,वहाँ ग्राम्यत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- वाह रे अकबरा, तेरे जे जे ठाठ।
नीचे दरी और ऊपर खाट॥ - यहाँ बादशाह अकबर को ‘अकबरा’, राजसिंहासन को ‘खाट’ तथा कालीन को ‘दरी’ कहने से ग्राम्यत्व दोष है।
- वाह रे अकबरा, तेरे जे जे ठाठ।
Additional Informationकाव्य दोष-
- जिस तत्व के कारण कविता के अर्थ को समझने में बाधा उत्पन्न होती है और काव्य-सौन्दर्य का अपकर्ष होता है, उसको काव्य-दोष कहते हैं।
काव्य दोष Question 6:
'अमानुषी भूमि अबानरी करौ।' वाक्य में कौन-सा काव्य-दोष हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 6 Detailed Solution
सही उत्तर 'वाक्य दोष' हैं।
- 'अमानुषी भूमि अबानरी करौ।' वाक्य में वाक्य दोष हैं।
- इस उदाहरण में ‘भूमि’ शब्द पहले आना चाहिए था। अतः यहाँ अक्रमत्व काव्य दोष होता है।
- शुद्ध वाक्य: 'भूमि अमानुषी अबानरी करौ।'
- वाक्य दोष:यदि वाक्य की रचना में दोष हो तो उसे वाक्य दोष कहते है।
Key Points
- काव्य-दोष परिभाषा :- जिस तत्व के कारण कविता के अर्थ को समझने में बाधा उत्पन्न होती है और काव्य-सौन्दर्य का अपकर्ष होता है, उसको काव्य-दोष कहते हैं।
- काव्य की रसानुभूति में बाधक तत्वों को काव्य-दोष कहा जाता है।
- काव्य दोष के प्रकार :-
- शब्द दोष: जहाँ काव्य में अनुचित पदों का प्रयोग किया जाए, वहाँ शब्द या पद दोष होता है।
- रस दोष: काव्य के रसास्वादन में जिन कारणों से बाधा उत्पन्न होती है। उन्हें रस-दोष कहते हैं।
- अर्थ दोष: कवि जिस भाव को व्यक्त करना चाहता है। उसका विपरीत या अन्य भाव प्रकट होने पर अर्थ दोष होता है।
काव्य दोष Question 7:
लोक या शास्त्र के विरुद्ध पदक्रम होने पर कौन सा काव्य दोष होता है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 7 Detailed Solution
लोक या शास्त्र के विरुद्ध पदक्रम होने पर 'दुष्कमत्व' काव्य दोष होता है।
Key Points
- काव्य रस के आस्वादन मे बाधा पहुँचाने वाले तत्व काव्य दोष कहलाते है।
- आचार्य मम्मट ने काव्य के तीन दोष माने है।
काव्य दोष | काव्य दोष की संख्या |
शब्द दोष | 37 |
अर्थदोष | 23 |
रस दोष | 10 |
Additional Information
दोष | परिभाषा | उदाहरण |
ग्राम्यत्व | काव्य में जहाँ ग्रामीण शब्दों का प्रयोग हो, वहाँ ग्राम्यत्व दोष होता है। |
कैसे कहते हो इस दुआर पर फिर कभी न आना। (इसमें दुआर ग्रा मीण शब्द है, इसलिए ग्राम्यत्व दोष है।) |
अप्रतीतत्व | जब काव्य में किसी विशेष शास्त्र के परिभााषिक शब्द का प्रयोग किया जाए , वहाँ अप्रतीत्व दोष है। |
बहुत देखे तेरे यह अनुभाव। ( इमसे अनुभाव साहित्य शास्त्र का पारिभाषिक शब्द है , जिसका अर्थ आश्रय की चेस्टाएं है।) |
अक्रमत्व | यह एक शब्द दोष है काव्य के शब्द प्रयोग में व्यतिक्रम (बाधा) हो जाना है अक्रमत्व दोष है। |
क्यों नहीं करुणा तुम्हारी छलकती है मूक। ( यहाँ मूक शब्द करुणा का विशेषण है , जो पद के अंत में रखा हुआ है।) |
काव्य दोष Question 8:
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन सा काव्य दोष है-
"देखौ चतुराई सेनापति कविताई की जु।
ग्रीष्म विषम बरसा की सम कर्यो है।”
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 8 Detailed Solution
इसका सही उत्तर विकल्प 1 है। अन्य विकल्प असंगत हैं।
- उपर्युक्त पंक्ति में च्युत संस्कृति काव्य दोष है।
- इसमें द्वितीय पंक्ति में 'बरसा की सम’ न होकर ‘बरसा के सम’ होना चाहिए।
- यहाँ व्याकरण दोष है और इसे ही च्युत संस्कृति काव्य दोष कहा जाता है।
- मुख्यार्थ में बाधा पहुँचाने वाले कारकों को काव्य-दोष कहते हैं। काव्य-दोष रसानुभूति में बाधा उत्पन्न करने तथा काव्योद्देश्य में व्यवधान पैदा करने वाले तत्वों को कहते हैं।
काव्य-दोषों की कोई निश्चित संख्या नहीं है। - काव्य के अर्थ को समझने में सामान्यतः चार प्रकार की बाधाएँ होती हैं। काठ्यार्थ को व्यक्त करने में शब्द, वाक्य, रस और अर्थ महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। काव्यार्थ की व्यंजना में आने वाली बाधाएँ इनसे ही सम्बन्धित होती हैं। इनको शब्द दोष, वाक्य दोष, रस दोष तथा अर्थ दोष कह सकते हैं।
अन्य विकल्प:
- अश्लीलत्व दोष- जब कविता में अभद्रतासूचक, असाहित्यिक, लज्जाजनक शब्दों का प्रयोग होता है तो वहाँ कविता में भद्दापन उत्पन्न हो जाता है।
- ग्राम्यत्व दोष- जहाँ काव्य में असाहित्यिक, भदेस, लोक प्रचलित, गँवारू शब्दों का प्रयोग होता है, वहाँ ग्राम्यत्व काव्य दोष होता है।
- क्लिष्टत्व दोष- जहाँ किसी शब्द का अर्थ आसानी से समझ में न आये वहाँ किलष्टत्व दोष होता है।
काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो अर्थात् वह जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। काव्य के मुख्य दो प्रकार माने गए हैं-
- स्वरूप के अनुसार काव्य के भेद
- शैली के अनुसार काव्य के भेद
काव्य दोष Question 9:
सुमेलित कीजिए :
(क) | कृपादृष्टि हो जाए तो बन जाएँ सब काम। | (i) | दुष्क्रमत्व दोष |
(ख) | लपटी पुष्प पराग रज, सनी स्वेद मकरंद। | (ii) | अक्रमत्व दोष |
(ग) | विश्व में मिलते नहीं हैं, वीर भीम समान के। | (iii) | अधिकपदत्व दोष |
(घ) | नृप मो को हय दीजिये, अथवा मत्त गजेन्द्र। | (iv) | न्यूनपदत्व दोष |
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 9 Detailed Solution
सही सुमेलन हैं-
कृपादृष्टि हो जाए तो बन जाएँ सब काम। | न्यूनपदत्व दोष |
लपटी पुष्प पराग रज, सनी स्वेद मकरंद। | अधिकपदत्व दोष |
विश्व में मिलते नहीं हैं, वीर भीम समान के। | अक्रमत्व दोष |
नृप मो को हय दीजिये, अथवा मत्त गजेन्द्र | दुष्क्रमत्व दोष |
Key Pointsअधिकपदत्व दोष-
- जहाँ काव्य में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग किया जाए, वहाँ अधिक पदत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- पुष्प पराग से रंगकर भ्रमर गुंजारता है।
- उपर्युक्त पंक्ति में ‘पुष्प’ शब्द को हटा देने पर भी अर्थ स्पष्ट हो जाता है। ‘पुष्प’ का प्रयोग अधिक होने के कारण अधिकपदत्व दोष है।
न्यूनपदत्व दोष-
- जहाँ अभीष्ट अर्थ को सूचित करने वाले पद की कमी हो और अर्थ को स्पष्ट करने के लिए कोई शब्द जोडना पड़े, वहाँ न्यून पदत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "पानी, पावक पवन प्रभु ज्यों असाधु त्यों साधु।"
- पानी, पावक पवन और प्रभु साधु और असाधु के साथ समान व्यवहार करते हैं- कवि यह कहना चाहता है, किन्तु समान व्यवहार शब्द को यहां छोड़ दिया गया है जिससे अर्थ में बाधा उत्पन्न हो रही है, अतः न्यून पदत्व दोष है।
अक्रमत्व दोष-
- जहाँ कोई पद उचित स्थान पर प्रयुक्त न होकर अनुचित स्थान पर प्रयुक्त हो और उसका क्रम जोडने में कठिनाई हो, वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- विश्व में लीला निरन्तर कर रहे हैं मानवी।
- यहां मानवी शब्द लीला से पहले प्रयुक्त होना चाहिए। वे प्रभु इस संसार में निरन्तर मानवी लीला कर रहे हैं।
दुष्क्रमत्व दोष-
- जहाँ शास्त्रों अथवा परम्परा में प्रसिद्ध क्रम के विपरीत किसी बात का वर्णन होता है, वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।"
- उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है।
काव्य दोष Question 10:
लोकनियम की अवहेलना से कौन सा काव्यदोष होता है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 10 Detailed Solution
लोकनियम की अवहेलना से दुष्क्रमत्व काव्यदोष होता है।
दुष्क्रमत्व दोष अर्थ दोष होता है।
Key Pointsदुष्क्रमत्व दोष:
- दुष्क्रमत्व दोष:- यह अर्थ दोष है। लोक या शास्त्र के विरुद्ध क्रम या दुष्क्रम को दुष्क्रमत्व दोष कहा जाता है।
- इस दोष में लोक और शास्त्र की निर्धारित मान्यताओं का क्रम उलट दिया जाता है । आचार्य भामह ने इसे 'अपक्रम' का नाम भी दिया है।
उदाहरण:
“मारुत नंदन मारुत को मन को खगराज को वेग लजायो।"
- यहां मन का वेग आ जाने के पश्चात खगराज के वेग का कोई औचित्य नहीं है।
काव्य दोष
- आचार्य भरतमुनि ने 10 काव्य दोष बताए हैं।
- आचार्य वामन ने 20 का काव्य दोष गिनाये हैं
- आचार्य विश्वनाथ ने 70 काव्य दोष गिनाये हैं जो सर्वाधिक है।
Additional Informationच्युत संस्कारत्वदोष:
- च्युत संस्कारत्व दोष (शब्द दोष) : यह एक व्याकरण दोष है। आचार्य वामन ने इसे ‘असाधु’ का नाम दिया है।
- व्याकरण विरुद्ध शब्दावली का काव्य में प्रयोग च्युतसंस्कृति दोष कहलाता है।
उदाहरण:
“मरम वचन सीता जब बोला
हरि प्रेरित लछमन मन डोला”
- यहां ‘अवधि’ भाषा में सीता स्त्रीलिंग के साथ 'बोला' क्रिया रूप असंगत है।
ग्राम्यत्व दोष
- ग्राम्यत्व दोष (शब्द दोष) : काव्य में जहां ग्रामीण शब्दों का प्रयोग हो वहां ग्राम्यत्व दोष होता है।
उदाहरण:
“लोक मात्र प्रियुक्तम ग्राम्यम"
“ताहि अहीर की छोरियां छछिया भरे छाछ पे नाच नचावे”
“पंथ के साथ ज्यो लोग लुगाई”